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________________ १३२० . जीवाभिगमसूत्र ' अथाल्पबहुत्वम्-'पढमसमयिकाणं सन्वेसि सव्वत्थोवा पढयसमयपंचिदिया' प्रथमसमयकैकेन्द्रियादि पञ्चन्द्रियान्तानां सर्वस्तोकाः प्रथमसमयक पञ्चेन्द्रियाः अल्पानामैवैकस्मिन् समये प्रथमसमयपश्चेन्द्रियाणामुत्पादात् । 'पहम समयचरिदिया विसेसाहिया' ततः प्रथमसमयचतुरिन्द्रिया विशेषाधिकार प्रभूतानामेकसमये उत्पादसंभवात् । 'पढमसमयतेइंदिया विसेसाहिया' पूर्वस्मात-प्रथमसमयत्रीन्द्रिया विशेषाधिकाः प्रभूतत्रीन्द्रियाणामेकसमये उत्पादात । 'पढर्मसमयबेईदिया विससाहिया' ततोऽपि प्रथमसमयद्वीन्द्रिया विशेषाधिका: एकदा कतिपया द्वन्द्रियोत्पादसंभवात् । 'पढमसमयएगिदिया विसेसाहिया' दिया प्रथम समयवर्ती जीवों में सबसे कम प्रथम समयवर्ती पञ्चे न्द्रियं जीव हैं क्योंकि एक समय में प्रथम समयवर्ती पञ्चेन्द्रिय जीवों का उत्पाद अल्प ही होता है 'पढमसमयचउरिदिया विसेसाहिया' इनकी अपेक्षा प्रथम समयवर्ती चौइन्द्रिय जीव विशेषाधिक है। क्योंकि ऐसे चौइन्द्रिय जीव का उत्पाद एक समय में इनकी अपेक्षा अधिक होता है 'पढम समय तेइंदिया विसेसाहिया' प्रथम समयवर्ती चौइन्द्रिय जीवों की अपेक्षा प्रथम समयवर्ती तेइन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं। क्योंकि ऐसे तेइन्द्रिय जीव का उत्पाद एक समय में इनकी अपेक्षा बहुत अधिक होता है 'पढमसमय वेइंदिया विसेसाहिंया' इनकी अपेक्षा प्रथम समयवर्ती दो इन्द्रिय जी विशेषाधिक है.क्योंकि ऐसें दोइन्द्रिय जीवों का उत्पाद एक समय में इनकी " . . . ८५ पर्ने स्थान - 'पढमसमयकाणं सव्वेसिं सव्वत्थोवा पढमसमयपंचिंदियो' प्रथम संभय' થતી માં સૌથી ઓછા પ્રથમ સમયતી પંચેન્દ્રિય જીવ છે. કેમકે એકે સમયમાં પ્રથમ સમયવતી પંચેન્દ્રિય જીવોને ઉત્પાત અલ્પ જ થાય છે. 'पंढमसमयचउरि दिया विसेसाहिया' तना ४२di प्रथम सभयवती यौद्रिय જીવ વિશેષાધિક છે. કેમકે એવાં ચોઈદ્રિય અને ઉત્પાત એક સમયમાં तेना ४२di बंधारे थाय छे. 'पढमसमय तेइदिया विसेसाहिया' प्रथम सभयती ચાઈદ્રિય જીવોના કરતાં પ્રથમ સમયવતી ત્રણ ઈદ્રિયવાળા જીવો વિશેષાધિક છે કેમકે–એવા ત્રણ ઈદ્રિયવાળા જીવોને ઉત્પાદ એક સમયમાં તેનાં કરતાં घर पधारे थाय छे. 'पढमसमय वेइंदिया विसेसाहिया' तेन। ४२di प्रथम સમયવતી બે ઈદ્રિયવાળા જીવો વિશેષાધિક છે. કેમકે એવા બે ઈદ્રિયવાળા અને ઉત્પાત એક સમયમાં તેના કરતાં ઘણુજ વધારે પ્રમાણમાં થાય છે. 'पढमसमयएगिदिया विसेसाहिया' तेना ४२di प्रथम सभयती २ मेन्द्रिय
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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