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________________ प्रमैयद्योतिका टीकाप्र.९ ५.१३९ दशविध सं० स० जीवनिरूपणम् १३१३ दिया-अपढमसमय बेइंदिया जाव अपढमसमयपचिंदिया' तत्र खलु ये ते मर्मज्ञा एवमुक्तवन्तः संमारसमापन्नकदशविधा जीवाः ते इत्थं समर्थयन्त:-उक्तवन्तः तद्यथा-श्रवणे दीयता क्षणः प्रथम एव-न द्वितीयादिः समयो वर्तनस्य' येषां ते तथाविधाः १ अप्रथमसमयैकेन्द्रियाः २ प्रथमसमयद्वीन्द्रियाः ३ अप्रथमसमय द्वीन्द्रियाः ४ यावत्-अप्रथमसमयपञ्चेन्द्रिया गण्यन्ते तावद्गणनाकार्या-१०। तत्र दशविधेषु-'पढमसमयएगिदियस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' ते. एवमाहंसु तं जहा-इत्यादि । टीकार्थ-गौतम से प्रभु ऐसा कह रहे हैं-हे गौतम ! जिन मर्मज्ञों ने संसारी जीव १० प्रकार हैं ऐसा कहा हैं उन्होंने इस सम्बन्ध में इस प्रकार से स्पष्टीकरण किया है-'पढमसमय एगिदिया अपढमसमय एगिदिया' प्रथम समयवर्ती एकेन्द्रिय, अप्रथमसमयवर्ती एकेन्द्रिय पढमसमय वेइंदिया, अपढमसमय वेइंदिया' प्रथम समयवर्ती दोइन्द्रिय, अप्रथम समयवर्ती दोइन्द्रिय 'जोव पढमसमय पंधिदिया अपढमसमय पंचिंदिया' यावत् प्रथम समयवर्ती तेन्द्रिय अप्रथम समयवर्ती तेइन्द्रिय प्रथम समयवर्ती चौइन्द्रिय अप्रथम समयवर्ती चौइन्द्रिय-तथा प्रथम समयवर्ती पंचेन्द्रिय और अप्रथम समयवर्ती पंचेन्द्रिय, इस प्रकार से ये १० प्रकार के संसारी जीव कहें गये हैं। अब गौतम ! प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'पढमसमय एगिदिहंसु तं जहा' त्यादि .. ટીકાઈગૌતમસ્વામીને પ્રભુશ્રી કહે છે કે હે ગૌતમ! જેમનો સંસારી જીવો ૧૦ દસ પ્રકારના છે, એ પ્રમાણે કહ્યું છે તેઓએ આ સંબંધમાં भी प्रमाणे २५ष्टी४२ ४३ छ. 'पढमसमयएगिदिया अपढेमसमयऐगिदिया' प्रथम सभयती मेन्द्रिय संप्रथम समयवती सन्द्रिय, 'पढम समय अॅइंदिया, अपढमसमयबेइंदिया' प्रथम समयवती मेद्रिय' म मग्रंथ सभयवती मे न्द्रिय, जाव पढमसमयपंचिंदिया, अपंढमसमयपंचिंदिया' ચાવતું પ્રથમ સમયવતી તે ઈદ્રિય અપ્રથમ સમયવતી તે ઈદ્રિય પ્રથમ સમયવતી ચૌ ઈદ્રિય અને અપ્રથમ સમયવર્તી ચીઈદ્રિય તથા પ્રથમ સમય વતિ પંચેંદ્રિય અને અપ્રથમસત્યવતી પંચેન્દ્રિય- આ પ્રમાણે એ બધા મળીને ૧૦ દસ પ્રકારના સંસારી છે કહેવામાં આવેલા છે. હવે ગૌતમસ્વામી તેઓની સ્થિતિના વિષયમાં પ્રભુશ્રીને પૂછે છે કે'पढमसमयएगिदियस्सणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता 3 मापन् । प्रथम जी० १६५
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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