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________________ १०८ जोवाभिगमसूत्रे चन्द्रप्रभववैडूर्यनानामणिरत्नखचितानि दण्डानि ‘णाणामणिकणगरयणविमलमहरिह तवणिज्जुजलविचित्तदंडा' नानामणिकनकरत्न विमलमहातपनीयोज्वलविचित्रदण्डानि, नानामण्यादि तपनीयोज्वलान्तरूपाः चित्रा:-आश्चर्यकरा दण्डा येपां चामराणां तानि तथा 'संखककुंददगरय अमयमहियफेणपुंजस निकासाओ' शहाकुन्ददकरजोऽमृतमथितफेनपुञ्जसन्निकाशानि, तत्र शंखो लोकप्रसिद्धः अकोलोकप्रसिद्धः कुन्दोहि पुप्पविशेपः दकरजः-उदककणा अमृतमथितफेनपुञ्जः क्षीरोदार्णवजलमथनसमुत्थ फेनसमुदाय एतेषामिव सन्निकाश:-प्रभा येषां तानि तथोक्तानि 'मुहुमरययदीहवालाओ' सूक्ष्मरजतदीर्घवालानि, सूक्ष्मरजतमया दीर्घा:-विस्तृता वाला येपी तानि तथोक्तानि 'सव्यरयणामयाओ' 'सर्वरत्नमयानि सर्वात्मना रत्नमयानीत्यर्थः 'अच्छाओ जाव पडिरूवाओ' अच्छानि यावत्श्लक्ष्णानि घृष्टानि गृष्टानि नीरजस्कानि निर्मलानि पिप्पङ्कानि निकंकटच्छायानि सप्रभाणि सोद्योतानि प्रासादीयानि दर्शनीयानि अभिरूपाणि प्रतिरूपादंडा' इन चामरों के दण्डों में चन्द्रकान्तमणि, वज्ररत्न एवं वैडूर्यमणि आदि अनेक प्रकार के रत्न खचित्त है 'णाणामणिकणगरयणविमलमहरिहतवणिज्जुज्जलविचित्तदंडा' इस तरह खचित अनेक प्रकार के मणियों से कनक से और रत्नों से एवं जडित विमल और अमृल्यतपनीय सुवर्ण से उज्ज्वलविचित्र दण्डवाले तथा 'संखककुंददगरयअमयहियफेणपुंजसन्निकासाओ' शंख, अंक, रत्न, कुन्दपुष्प, दकरज-जल विन्दु, एवं अमृत का मथित फेन पुञ्ज की जैसी शुभ्रतावाले 'सुटुमरययदीहवालाओ' सूक्ष्म एवं रजत के जैसे दीर्घवालो-वाले ये चामर 'सव्वरयणामया' सर्वात्मना रत्नमय है तथा-'अच्छाओ जाव पडिरूवाओ' अच्छ से लेकर प्रतिरूप तक के विशेषणों वाले हैं । 'तेसिं णाणामणिरयणखचियदंडाग याभराना गामा यतिमाश, पत्न, मन वैडूय मणि विगेरे आने जाना रत्ना छ. 'णाणामणिकणगरयण विमलमहरिह तवणिज्जुज्जलविचित्तदंडा' 20 प्रारथी मने प्रश्न भयोथी સોનાથી અને રત્નોથી જડેલ અને વિમલ અને અમૂલ્ય તપનીય સુવર્ણથી Sorrqel मन विचित्र वाण तथा 'संखककुंददगरयअमयमहिय फेणपुंजसन्निकाસા શંખ અંક રત્ન, કુંદપુષ્પ દરજ-જલબિંદુ તથા મંથન કરવામાં આવેલ अभूतना शाना सा २१ स३ छ. 'सुहमरयय दीहवालाओ' ला भने यांहीनी पा सरत तथा einाणे पाणा से याम। 'सव्वरयणामया' सर्प प्रसारथी रत्नमय छ. तथा 'अच्छाओ जाय पडिरूयाओ' अ२७थी ४४ प्रति३५ सुधीना विशेष वा छ. 'तेसिं णं तोरणाणं पुरओ' मे तोरणानी मा
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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