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________________ १०६ जीवाभिगमसूत्र न्तलिप्तसिंहकेसरप्रत्युत्थिताभिरामाणि उपचित क्षौमदुकूलप्रतिच्छादनानि सुरविरचितरजस्त्राणानि रक्तांशुकसंवृतानि सुरम्याणि आदर्शरूतबूरनवनीततूल मृदुकानि प्रासादीयानि दर्शनीयानि अभिरूपाणि प्रतिरूपाणि । 'तेसि णं तोरणाणं पुरओ' तेषां खलु तोरणानां पुरतोऽग्रभागे 'दो दो रूप्पच्छदा छत्ता पन्नत्ता' द्वे द्वे रूप्याच्छादने छत्रे प्रज्ञप्ते-कथिते 'तेणं छत्ता वेरुलियभिसंत विमलदंडा' तानि खल्लु छत्राणि वैडूर्यरत्नमयविमलदण्डानि 'जंबूणयकणिका वइरसंधी' जाम्बूनदसुवर्णविशेष कर्णिकानि वज्नमयसन्धीनि, 'मुक्ताजालपरिगया' मुक्ताः-मणिविशेष स्तासांजालैः परिगतानि-सुशोभितानि 'अट्ठसहस्स वरकंचणसलागा' अष्टसहस्रवरकाश्चनशलाकानि अप्टौ सहस्राणि अष्टसहस्रसंख्यकाः वरकाञ्चनशलाका:-श्रेष्ट और रत्न जडे हुए है । इत्यादि रूप से इन सिंहासनों के सम्बन्ध में सब वर्णन पीछे किया जा चुका है सो वहीं से इसे देखलेना चाहिये। 'तेसिणं तोरणाणं पुरओ' इन तोरणों के आगे 'दो दो रूपच्छदा छत्ता पन्नत्ता' दो दो रुप्य के आच्छादन भूत-उन सिंहासनों की धूप आदि से रक्षा करनेवाले-छन कहे गये हैं। 'तेणं छत्ता वेरुलियभिसंतविमलदंडा' इन छत्रों का दण्ड वैडूर्य रत्नका बना हुआ है अतएव वह विमल है 'जंबूणयकण्णिका' जाम्बूनदस्वर्ण की इनकी कर्णिका हैजिनमें छत्र के ताणीये तार मे पोये हुए रहते हैं। इन छात्रों की संधियां वज्ररत्न की है बहुत मजबूत वह सुन्दर है। 'मुत्ताजालपरिगया' थे सब छत्र मणिविशेषके जालोंसो परिगत सुशोभित है। 'अहसहस्सवरकंचणसलागा' १००८ शलाकाएँ-ताणीये-इन प्रत्येक छत्रों में लगी हुई हैं। ये शलाकाएं सुन्दर व सुवर्ण की સારવાળા ચંદ્રકાંત વિગેરે મણિના બનાવેલ છે. તથા તેમાં અનેક પ્રકારના મણિ અને રત્નો જડવામાં આવેલ છે. વિગેરે પ્રકારથી એ સિંહાસનનું पणुन पासा ४२पामा मापी गये छ. तो त्यांथीते समय से. 'तेसि णं तोरणाणं पुरओ' ये तोरणनी २मा 'दो दो रुपच्छदा छत्ता पन्नत्ता' मध्ये રૂપાના આચ્છાદન એટલે કે તડકા વિગેરેથી એ સિંહાસનની રક્ષા કરવાના छत्री सा छे. 'ते णं छत्ता वेरुलियभिसंतविमलदंडा' ये छत्रानो हुँ वैड्य २.नना मनावेद छे. मने तेथी से निर्भय छे. 'जंबूणयकण्णिका' भून એનાથી બનાવેલ તેની કર્ણિક છે. અર્થાત્ જેમાં એ છત્રોના સળીયાઓ ભરાવવામાં भावे छ. ये छत्रानी सधिया परत्नानी छ. 'मुत्ताजालपरिगया' से मधा છત્ર મણિવિશેષની જાળથી શણગારેલ હેવાથી વધારે સુશોભિત લાગે છે. 'अट्ठ सहस्स वरकंचणसलागा' ये ४२४ छत्रीमा १००८ मे ॥२ ने माहे
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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