SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११६४ जीवाभिगमसूत्रे असंख्येयगुणाः पर्याप्त कत्रीन्द्रियापेक्षया । चतुरिन्द्रिया अपर्याप्तका विशेषाधिकाः अपर्याप्तकपञ्चेन्द्रियतः । त्रीन्द्रिया अपर्याप्तका विशेषाधिकाः अपर्याप्तक चतुरिन्द्रियापेक्षया अपर्याप्तकद्वीन्द्रियाः अपर्याप्तकत्रीन्द्रियापेक्षया । केन्द्रिया अपर्याप्तका अनन्तगुणाः अपर्याप्तक द्वीन्द्रियेभ्यः । एतदपेक्षयाऽपर्याप्तक सेन्द्रिया विशेषाधिकाः । एभ्यः एकेन्द्रियपर्याप्तकाः संख्येयगुणाः । एभ्यः सेन्द्रियपर्याप्ता विशेषाधिकाः । एभ्यो विशेपाधिकाः सेन्द्रिया भवन्तीति अल्पबहुत्वप्रकरणम् । त एते पञ्चविधाः पञ्चप्रकारकाः संसारसमापन्नका जीवा निरूपिताः । इति चतुर्थी प्रतिपत्तिः ॥ सू० १२७|| उक्ता पञ्चविधा चतुर्थी प्रतिपत्तिः क्रमप्राप्तां पडूविधां पञ्चमीं प्रतिपत्तिमथारभते मूलम् - तत्थ णं जे ते एवं आहंसु छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा ते एवमाहंसु तं जहा- पुढवीकाइया आउक्काषाधिक हैं इनकी अपेक्षा 'वेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया' दोइन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं 'एगिंदिय अपज्जन्तमा अनंतगुणा' इनकी अपेक्षा एकेन्द्रिय अपर्याप्तक अनन्तगुणें अधिक हैं इनकी अपेक्षा 'सइंदिया अपज्जन्त्ता विसेसाहिया एगिंदिय पज्जन्ता संखेज्जगुणा' सेन्द्रिय अपर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं इनकी अपेक्षा एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीव संख्यातगुणें अधिक हैं। 'सदिय पज्ज'तगा विसेसाहिया' इनकी अपेक्षा सेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं । और इनसे विशेषाधिक सेन्द्रिय है । इस तरह से पांच प्रकार के संसारी जीवों के सम्बन्ध में यह निरूपण है | ॥१२७॥ ॥ चतुर्थी प्रतिपत्ति समाप्त ॥ अपर्याप्त विशेषाधिऊ छे. तेना रतां 'वेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया' मे धन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिः छे. 'एगिदिय अपज्जत्तगा अनंतगुणा' तेना ४२तां मेेन्द्रिय व्यपर्याप्त अनंतशा वधारे छे, तेना डरता 'सईदियो अप जत्तगा विसेसाहिया एगिदिय पज्जत्ता संखेज्जगुणा' सेन्द्रिय अपर्याप्त व વિશેષાધિક છે. તેના કરતાં એકેન્દ્રિય પર્યાપ્તક જીવ સંખ્યાતગણા વધારે છે. 'सईदिय पज्जत्तगा विसेसाहिया' तेना ४२तां सेन्द्रिय पर्याप्त व विशेषाधि છે. અને તેનાથી વિશેષાધિક સેન્દ્રિય છે, આ પ્રમાણે પાંચ પ્રકારના સ`સારી જીવેાના સમધમાં આ નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે. u સૂ. ૧૨૭ ॥ ચેાથી પ્રતિપત્તિ સમાપ્ત
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy