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________________ प्रमेययोतिका टीका प्र.४ स. १२७ एकेन्द्रियादीनामल्पबहुत्वनिरूपणम् ११६३ याणाञ्च पर्याप्तकानां च अपर्याप्तकानां च कतरेभ्यः कतरेऽल्पा - बहुका - तुल्याविशेषाधिका वेति प्रश्नः भगवानाह - गौतम ! सर्वस्तोका चतुरिन्द्रियाः पर्याप्तकाः तदपेक्षया पंचेन्द्रियाः पर्याप्तका विशेषाधिका भवन्ति । 'बेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइ दिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, पंचिदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, चाउरिंदिया अपज्जत्तमा विसेसाहिया, तेइ दिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइ दिया अपज्जत्तगा विसेरााहिया, एगिंदिय अपज्जत्तगा अनंतगुणा सई दिया अपज्जतगा विसेसाहिया, एगिंदिय पज्जत्ता संखेज्जगुणा, सइदिय पज्जत्ता विसेसाहिया सई दिया विसेसाहिया - 'से' तं पंचविहा संसारसमावन्नगा जीवा' द्वीन्द्रियाः पर्याप्तका विशेषाधिका अपर्याप्तक चतुरिन्द्रियेभ्यः । पर्याप्तक द्वीन्द्रियापेक्षया पर्याप्तका स्त्रीन्द्रिया विशेषाधिकाः । अपर्याप्तकपञ्चेन्द्रिया कौन किनकी अपेक्षा अल्प हैं ? कौन किनकी अपेक्षा बहुत हैं ? कौन किनके बराबर हैं ? और कौन किनसे विशेषाधिक हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा । सव्वत्थोवा चाउरिंदिया पज्जन्त्तगा' हे गौतम ! सब से कम पर्याप्त चौइन्द्रिय जीव है इनकी अपेक्षा 'पंचिंदिया पज्जन्तगा विसेसाहिया' पर्याप्तक पञ्चेन्द्रिय विशेषाधिक हैं इनकी अपेक्षा 'बेइंदिया पज्जन्समा विसेसाहिया' पर्याप्तक दोइन्द्रिय जीव विशेषाधिक है । इनकी अपेक्षा 'तेइ दिया पज्जन्तगा विसेसाहिया' पर्याप्तक तेइन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं। पंचिदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' इनकी अपेक्षा पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तक जीव असंख्यातगुणे अधिक हैं 'चरिंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया' इन की अपेक्षा चौइन्द्रिय अपर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं 'तेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया' इनकी अपेक्षा तेइन्द्रिय अपर्याप्तक विशे જીવામાં કાણુ કાના કરતાં ઓછા છે ? કાણુ કેાના કરતાં વધારે છે ? કેણુ કાની ખરાખર છે? અને કાણુ કાનાથી વિશેષાધિક છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાપ્ર ભુશ્રી કહે છે ४- 'गोयमा ! सव्वत्थोवा चउरिं दिया पज्जत्तगा' डे गौतम ! सौथी गोछा पर्याप्त यार छद्रियवाजा व छे तेना रतां 'पंचि दिया पज्जत्तगा विसेसाहिया' पर्याप्त यचेन्द्रिय विशेषाधि छे. तेना पुरतां 'ते इंदिया पज्जत्तगा विसेसा • हिया' पर्याप्त ते द्रिय व विशेषाधिः छे. 'पंचि दिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा' तेना ४२तां पचेन्द्रिय अपर्याप्त लव असच्यातगणा वधारे छे. 'चउरिंदिया अपज्जतगा विसेसाहिया' तेना ४रतां यौधन्द्रिय अपर्याप्तः लष विशेषाधि४ छे. 'तेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया' तेना ४२तां तेष्ठ द्रिय
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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