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________________ जीवाभिगमसूत्र कोटिकोटिप्रमाणत्वात् । 'तेइंदिया विसेसाहिया' त्रीन्द्रियाः पुनश्रतुरिन्द्रियेभ्योविशेषाधिकाः तेपां विष्कम्भसूच्याऽप्रभूततर संख्येययोजनकोटिकोटिप्रमाणत्वात । 'पेइंदिया विसेसाहिया' तेभ्योऽपि द्वीन्द्रियाः विशेषाधिकाः तेषां द्वीन्द्रियाणां विष्कम्भसूच्याः प्रभूततमसंख्येययोजनकोटिकोटिप्रमाणत्वात् इति । 'एगिदिया अणंतगुणा' द्वीन्द्रियेभ्योऽपि एकेन्द्रिया अनन्तगुणा अधिकाः, वनस्पति जीवानामनन्ताऽनन्तत्वात् इति । संप्रति अपर्याप्तविशेषणविशिष्टानामेपामल्पवहुत्वमाह-एवं अपज्जत्तगाणं' एवमपर्याप्तकानाम् तथाहि-अपर्याप्तकैक द्वि-त्रि चतुः पञ्चेन्द्रियवतां कतरेभ्यः कतरेऽल्पा बहुका स्तुल्याविशेषाधिका वा ? भगवानाह-गौतम ! 'सब्वत्थोवा पंचिंदिया अपज्जत्तगा' अपर्याप्तकयोजन कोटी कोटी प्रमाण जो विष्कम्भ सूची है उस विष्कम्भ सूची के जो बहुत अधिक संख्यात योजन कोटि कोटी हैं, उनके बराबर इनका प्रमाण है इनकी अपेक्षा 'तेइंदिया विसेसाहिया' तेइन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं-क्योंकि इनका प्रमाण विष्कम्भ सूची के जो प्रभूततर संख्यात योजन कोटी हैं उनके बराबर है 'वेइंदिया विसेसाहिया' इनकी अपेक्षा दो इन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं क्योंकि इनका प्रमाण विष्कम्भ सूची के जो प्रभूततम संख्यात योजन है उस की कोटी कोटी के बराबर है। 'एगिदिया अणंतगुणा' इनकी अपेक्षा एकेन्द्रिय जीव अनन्तगुणें हैं क्योंकि एकेन्द्रिय जीव राशि वनस्पतिकायिक जीवों की अपेक्षा अनन्तानन्त प्रमाण वाली कही गई है। अपर्याप्त एकेन्द्रियादिक जीवों के अल्पवहुत्व का कथन'एवं अपज्जत्तगाणं सव्वत्थोवा, पंचिंदिया अपज्जत्तगा चरिंમ્ભસૂચિના જે ઘણું વધારે સંખ્યાત જન કેટિટિ છે. તેની બરાબર એનું प्रभा छे. तेना ४२ता 'तेइंदिया विसेसाहिया' न्द्रियाणा विशेષાધિક છે. કેમકે–તેઓનું પ્રમાણુ વિષ્કમ્ભસૂચિનું જે પ્રભૂતતર સંખ્યાત કટિ 3टी छे. तेनी मरास२ छ. वेइंदिया विसेसाहिया' तेना ४२त मे दियवास જીવ વિશેષાધિક છે. કેમકે તેનું પ્રમાણ વિષ્કમ્પસૂચીના જે પ્રભુતતર સંખ્યાત यौन छ तनी सटी टीनी परामर छ. 'एगि दिया अणंतगुणा' तना કરતાં એક ઇન્દ્રિયવાળા જ અનંતગણું છે. કેમકે–એકેન્દ્રિય જીવરાશિ વનસ્પતિકાયિક જીવેના કરતાં અનન્તાનન્ત પ્રમાણુવાળી કહેવામાં આવેલ છે. અપર્યાપ્તક એકેન્દ્રિયાદિક ના અલ્પ બહુત્વનું કથન 'एवं अपजत्तगाणं सव्वत्थोवा पंचिंदिया, अपज्जत्तगा चरिंदिया अपज्जत्तगा
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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