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________________ જીર जीवाभिगमसूत्रे केवलं - एकोन पंचाशद्रात्रिदिदानि उत्पनः जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तम् । 'चउरिंदियस्स छम्मांसा' चतुरिन्द्रियस्य च जघन्योत्कर्पाभ्यामन्तर्मुहूर्त - पण्मासाथ 'पंचिदियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई' पञ्चेन्द्रियस्य तु जघन्येनाऽन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेण त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि । 'अपजत्तम एगिंदियस्स णं केवइयं कालं ठिई पन्नता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुतं' उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं' अपर्याप्त कै केन्द्रियस्य खलु भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः ? गौतम ! जघन्येनाऽन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेणापि, तथापि उत्कृष्टपदमर्यादया किञ्चिद् वैलक्षण्यं कल्पइसी प्रकार तेइन्द्रिय जीव की ४९ दिन रात की स्थिति कही गई हैयह कथन उत्कृष्ट स्थिति की अपेक्षा कहा गया जानना चाहिये तथा तेइन्द्रिय जीव की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूत' की कही गई है 'चरिंदियस्स छम्मासा' चौइन्द्रिय जीव की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट स्थिति ६ मास की कही गई है 'पंचि - दियस्स जहणणेणं अंतोमुत्तं उक्को सेणं तेत्तीस सागरोवमाई' तथा - पंचेन्द्रिय जीव की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त्त की है और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की है। 'अपज्जत्तग एगिंदियस्स णं भंते ! hari कालं ठिई पण्णत्ता' हे भदन्त ! अपर्याप्त एकेन्द्रिय जीव की स्थिति कितने काल की है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा - 1 जहणेणं अंतोमुद्दत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं' हे गौतम! अपर्या प्तक एकेन्द्रिय जीव की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट की अपेक्षा एक अन्तर्मुहूर्त्त की है परन्तु उत्कृष्ट स्थिति का जो अन्तर्मुहूर्त्त है वह " વાળા જીવની ૪૯ એગણુ પચાસ રાતદિવસની સ્થિતિ કહેવામાં આવેલ છે. આ કથન ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાથી કહેલ છે તેમ સમવુ તથા તેઇન્દ્રિય लवनी धन्य स्थिति गोठ अंतर्मुहूर्त'नी उडेवामां आवे छे. 'चउरिंद्वियस्स છમ્માલ' ચારઇન્દ્રિય વાળા છત્રની જઘન્ય સ્થિતિ એક અંતર્મુહૂત ની અને उत्दृष्ट स्थिति ६ छ भासनी आहेस छे. 'पंचिंदियस्स जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई' तथा पांयन्द्रिय वाणा लपनी नधन्यस्थिति એક અંતર્મુહૂર્તીની છે, અને ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિ ૩૩ તેત્રીસ સાગરાપમની છે. 'अपज्जत्तग एगिंदियाणं केवई कालं ठिई पण्णत्ता' हे भगवन् ! अपर्याप्त એકેન્દ્રિય જીવની સ્થિતિ કેટલી કહેવામાં આવેલ છે ? ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે छे - 'गोयमा । जहणेणं अंतोमुद्दत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं' हे गौतम | અપર્યાપ્તક એક ઇન્દ્રિય વાળા જીવની સ્થિતિ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી અપેક્ષાથી એક અંતર્મુહૂની છે, પરંતુ ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિનું જે અંતર્મુહૃત છે. તે
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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