SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 844
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० जीवामिगमको तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते- पवेदिका पद्मवरवेदिका, अयमर्थ:-पदमवरपेदिका इत्येवं रूपस्य शब्दस्य तत्र प्रत्तो कि निमित्तं पदमवर वेदिकायाः पदमवर थेदिकेवि नामकरणे को हेरिति प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पउमवरवेइया' पद्वरवेदिकायाम् 'तत्य तत्य देसे नहि तहि तत्र तत्र देशे तस्यैव देशस्य तत्र तत्रैकदेशे 'वेइयामु' वेदिकामु उपवेशनयोग्यमत्तवारणरूपासु 'वेड्यावाहासु' वेदिका पार्वेषु 'वेइयासीसफळएमृ' वेदिकाशीर्षफल केषु वेदिकायाः शीर्पमुपरिभागस्तदेव फलकं तेषु, 'वेड्यापुडं. रेसु' वेदिकापुटान्तरेपु द्वे वेदिके वेदिकापुटम् तानि वेदिकापुटानि तेषामन्तराणि अपान्तरालानि वेदिकापुटान्तराणि तेपु, तथा 'खंभेम' सामान्यतः स्तम्भेषु तथा -'खंभवाहामु स्तम्भपार्चेषु 'खंभप्सीसे सु' स्तम्भशीर्षेषु 'खमपुडंतरेसु' स्तम्मपुटान्तरेषु द्वौ स्तम्मो स्तम्भपुटम् तेषामन्तराणि-अपान्तरालानि तेपु 'मूइस' सूत्रीषु फलक सम्बन्धविघटनाभावहेतु पादुका स्थानीयास तासामुपरीति तात्पर्यायः नाम आपने किस कारण से हुआ धनलाया है । अर्थात् इसके नामकी शब्द प्रवृत्ति में क्या कारण है ? जिससे यह पद्मवरवेदिका कहलाती है। इस के उत्तर में प्रभुश्री करते है । 'गोथमा' पडमवरवेदियाए तत्थर देसे तहिं२ वेदियासु वेदियावाहासु वेदियासीसफलएसु, वेदियापुररेसु' खंभे खंभवाहासु, ख मसीसेसु, खंभपुडतरेसु' हे गौतम ? पद्मवरवेदिका के उन उन स्थानों में-जैसे वेदिका के उपवेशनयोग्य छज्जों के ऊपर वेदिका के दोनों पार्श्वभागों पर वेदिका के शीर्ष उपरिभागरूप फलकों के ऊपर वेदिका के पुटान्तरो में-दो वेदिकाओं के अपान्तराल में स्तम्भों के ऊपर स्तम्भों की भाजू घाज में स्तम्भों के शीर्ष स्थान पर स्तम्भपुटान्तरों में-दो स्तम्भों के बीच में 'सईसु वेइया' सपन में यम१२ वहानु मे नाम माये ॥ २५यी કહેલ છે? અર્થાત્ તેના નામની શબ્દ પ્રવૃત્તિમાં શું કારણ છે કે જેથી એ यम१२ व ४ाय छ १ २५ प्रश्न उत्तरमा असुश्री ४ छ । 'गोयमा ! पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहि तहि वेदियासु वेदियावाहासु वेदिया सीसफलएसु, वेदिशपुडतरेसु, खंभेसु खंभवाहासु खंभसीसेसु, खंभपुडंतरेसु' હે ગૌતમ! પદ્મવર વેદિકાના એ એ સ્થાનમાં જેમ વેદિકાના ઉપવેશ યોગ્ય છજ જેની ઉપર વેદિકાના અને પાર્થ ભાગો પર વેદિકાના શિરોભાગ રૂપે ફલકેની ઉપર વેદિકાના પુરાન્તમાં બે વેદિકાના અન્તરાલમાં સ્તની ઉ૫ર સતની આજુ બાજુમાં સ્તના ઉપરના ભાગમાં સ્તન્મ પુરાતમાં
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy