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________________ प्रमैयद्योतिका टोका प्र.३ उ.३ सू.५० ज्योतिष्कदेवानां विमानादिकर ७८६ पक्षप्ता:-कथिता इति पर्षत्संरुण विषयकः प्रश्नः, भगवालाह-'शोयमा' इत्यादि, 'गोयमा !' हे गौतम ! 'तिन्नि परिसाओ पन्नत्ताओ' तिस्रः त्रिसंख्यकाः पर्षदः पज्ञप्ता-कथिता इति । 'तं जहा' तद्यथा-'तुंबा हडिया पेच्चा' तुम्बा त्रुटिता प्रेत्या, तत्र-'अभितरिया तुंबा' आभ्यन्तरिका तुम्बा, 'मज्झिमया तुडिया' माध्यमिका त्रुटिता, 'बाहिरिया पेच्चा' वाद्या प्रेत्या 'सेसं जहापास्त परिमाण ठिई वि' शेष यथा कालल्य परिमाणं परिषत्रयस्थि तदेवदेवीनां सख्यापरिमाणं तथा तत्रस्थदेवदेवीनां स्थितिरपि तथैव वाच्या, 'अट्टो जहा चपरस्स' अर्थों यथा चमरस्य-अर्थ: 'से केण टेणं' इत्यादि रूपोऽर्थश्चमरवदनापि वाच्या, पर्षदःअभ्यन्तरिकादि नामकरणे यो हेतुः प्रदर्शितश्चमरेन्द्र प्रकरणे त हापि ज्ञातव्यः । 'चंदस्स वि एवं चेव चन्द्रस्यापि एवमेव, सूर्यस्य पर्षदादिकं यथा कथितं तथा चन्द्रस्यापि तयैव ज्ञातव्यमिति ।।०५०॥ के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोधमा ! लिणि परिखाओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ज्योतिषेन्द्र ज्योतिपराज सूर्यकी तीन परिषदाएं कही गई है। 'तं जहा' जो इस प्रकार से है-'तुवा, तुडिया, पेच्चा' तुम्घा, बांटता, और प्रेत्या, इन में 'अभितरिया तुषा, मज्झमिया तुडिया वाहिरिया पेच्चा' तुम्बा नामकी परिषदा आभ्यन्तर परिषदा कही गई है त्रटिता नामकी परिषदा मध्यमिका परिषदा कही गई है । और प्रेत्यालाम की परिषदा वाह्यापरिषदा कही गई । 'सेसं जहा कालस्त परिमाणं ठिई वि' जिस प्रकार से काल की सभा के देवों का एवं देवियों का परि माण-संख्या और उनको स्थितिका कथन किया गया है। वैसा ही यहां समझ लेना चाहिए 'अट्ठो जहा चमरस्ल' चमर के प्रकरण में इन सभाओं के नाम होने में हेतु प्रदर्शित किया गया है-वही सब कथन 'गोयमा ! तिण्णि परिसाओ पण्णत्ताओ' 3 गौतम ! riतिषन्द्र ज्योतिष २००४ सूर्यनी त्रय परिषामा ४९ छे. 'त जहा' त मा प्रमाणे. 'तुवा, तुडिया, पेच्चा' तुम्या, त्रुटिता भने प्रेत्या तमा 'अभितरिया तु बा, मज्झमिया तुडिया बाहिरिया पेच्चा' तमां तुमा परिषहाने मान्यत२ परिहा ४ छे. ટિતા નામની પરિષદાને મધ્યમિકા પરિષદા કહી છે. અને પ્રત્યા નામની परिषहाने माद्या परिषद डे . 'सेन जहा कालस्म परिमाणं टिई विपर પ્રમાણે કાળની સભાના દેવ અને દેવિયનું પરિમાણ, સંખ્યા અને તેઓની સ્થિતિનું કથન કરવામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું કથન અહીયાં પણ સમજી खे. 'अट्रो जहा चमरस्स' यभरना प्ररमा | समासाना नाम जापाना સંબંધમાં કારણે બતાવેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું તમામ કથન અહીયાં પદ્ય
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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