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________________ ६२८ जीवाभिगमस्त्र संस्थिताः, हयं शिखररहितं धनिनां गृहं तत्सदृशाः 'गवखसंठिया' गवाक्षसंस्थिताः गवाक्षो हर्थजालं तादृशाः 'बालग्गपोतियसंठिया' वालाग्रपोति. कसंस्थिताः तत्र वालाग्रपोतिका नाम जलस्योपरिमासादः 'वळभीसठिया' वलभीसंस्थिताः, तत्र वकभी छदिराधारस्तत्मधानकं गृहम्, 'अण्णे तत्थ बहवे वरभवण सयणासणविसिटसंठाणसंठिया' अन्थे तत्र बहवो नरभवनशयनासन विशिटसंस्थानसंस्थिताः 'सुइसीयलच्छाया' शुभशीतलच्छायाः शुमा शीतला छाया येषां ते वथा, 'ते दुमगणा पण्णता समणाउसो' ते द्रुमगणा:-कल्पवृक्षाः यथोक्त वर्णित स्वरूपाः प्रज्ञप्ता:-कथियाः हे श्रमणायुष्मन् । 'अत्यि णं भंते ! एगोस्य गवक्खसंठिया, वालरंगपोहयसंठिया, बलभीसंठिया कोई २, वृक्ष अटारी-महल के उपर के भाग जैसे आकार वाले होते है कोई २, वृक्ष राजमहल के जैसे आकार वाले होते हैं कोई वृक्ष शिखर विहीन धनिकों के गृह के जैसे आकार वाले होते हैं कोई २, वृक्ष गवाक्ष झरोखे-के जैसे आकार काले होते हैं, कोई २, वृक्ष वालाग्रपोतिका-जल के ऊपर पने हुवे प्रासाद के जैसे आकारवाले होते हैं, कोई कोई वृक्ष बलभीछज्जे के जैसे आकार वाले होते हैं 'अण्णे तत्थ बहवे वरभवणसयणासण विसिट संठाणसंठिया' और भी जो वहां वृक्ष होते हैं वे भी कितनेक श्रेष्ठ भवन के जैसे विशिष्ट आकार वाळे, कितनेक शयन के जैसे विशिष्ट आकार वाले, कितनेक आसन के जैसे विशिष्ट आकार वाले होते हैं 'सुहसीयलच्छाया' इन वृक्षों की छाया शुभ और शीतल होती है 'ते दुमगणा पण्णत्ता०' हे श्रमण आयुष्मन् ! इस प्रकार के आकार पोइयसठिया वलभीसठिया' । वृक्ष मटारी भवना ५२॥ माग જેવા આકારવાળા હોય છે. કેઈ કોઈ વૃક્ષે રાજમહેલના આકાર જેવા આકારવાળા હોય છે. કેઈ કઈ વૃક્ષ શિખર વગરના ધનવાનોના ઘરના જેવા આકારવાળાં હોય છે. કઈ કઈ વૃક્ષે ગવાક્ષ ઝરૂખાના જેવા આકારવાળા હોય છે. કોઈ કઈ વૃક્ષ વાલાપતિકા પાણીની ઉપર બનાવેલા પ્રાસાદ મહેલના જેવા આકારવાળા હોય છે. કેઈ કઈ વૃક્ષે વલભીછજાના જેવા मारवाडीय छे. 'अण्णे तत्थ बहवे घरभवणसयणासण विसिट्ट संठाण सठिया' मी पण त्या वृक्षा होय छे. ते अधा पोटमा उत्तम ભવનેના જેવા વિશેષ પ્રકારના આકરવાના કેટલાક શયનના જેવા વિશેષ પ્રકારના આકારવાળા, કેટલાક આસનના જેવા વિશેષ પ્રકારના આક્રરવાળા हाय छे. 'सुहसीयलच्छाया' या वृक्षानी छाया शुम मर शीतल डाय छे. 'वे दुमगणा पण्णत्ता' श्रम मायुभन माया ना मा२पाणा भा
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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