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________________ - ४१० जीवाभिगम मुखाः २२, विद्युन्मुखाः २३ विद्युताः २४, घनदन्ताः २५, लष्टदन्ता: २६, ' गूढदेवाः २७, शुद्धदन्ताः स्रु० ॥३३॥ टीका - 'स्ले किं तं मनुस्सा' अथ के ते मनुष्याः, मनुष्याणां कियन्तो भेदा इति प्रश्नः, उत्तरमाह - ' मणुस्सा' इत्यादि, 'मणुस्सा दुविहा मनुष्या द्विविधा. - द्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः कथिता - इति, द्वैविध्यं दर्शयति- 'तं जहा' इत्यादि, 'तं जा' तद्यथा - 'समुच्छिममणुस्साय गव्मदक्कंतियमणुस्साय' संमूर्छिममनुष्याच गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याश्च तत्र शुक्रशोणितादि सन्निपातव्यतिरेकेण जायमानाः संमूच्छिमाः शुकशोणितादि सन्निपातेन जायमानाः गर्भजा, तथा च - गर्भजागर्भजभेदेन मनुष्या द्विविधा भवन्तीति भावः । 'से किं तं संमुच्छिममणुस्सा' अथ के ते संमूच्छिममनुष्याः संमूच्छिममनुष्याणां कियन्तो भेदा इति प्रश्नः भगवानाह - 'संमुच्छिम' इत्यादि, 'संमुच्छिममणुस्सा तिर्यग्योनिक अधिकार समाप्त कर अब सूत्रकार मनुष्य के अधि कार का कथन करते है । 'से किं तं नपुस्ता' - इत्यादि । टीकार्थ- 'से किं तं मणुस्सा' हे भदन्त ! मनुष्यों के कितने भेद हैं? इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं- हे गौतम ! 'मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता' मनुष्यों के दो भेद हैं 'तं जहा' वे इस प्रकार से हैं- 'संमुच्छिम मणुस्सा य गग्भवक्कंतिय मणुस्सा य' एक संमूच्छिम मनुष्ध और दूसरे गर्भज मनुष्य इनमें शुक्र शोणित आदि सम्बन्ध के विना जो मनुष्य उत्पन्न हो जाते हैं वे समूच्छिम मनुष्य है । एवं शुक्र शोणित आदि के सम्बन्ध से जो जीव उत्पन्न होते हैं वे गर्भज मनुष्य हैं, 'से किं तं संमुच्छिम मणुम्सा' हे भदन्त ! संमूच्छिम मनुष्यों के कितने भेद हैं ? उत्तर में प्रभु श्री कहते हैं- 'संमुच्छिम मणुस्सा તિય Àાનિક અધિકાર સમાપ્ત કરીને હવે સૂત્રકર મનુષ્યના અધિકારનું अथन ४२ छे. – 'से किं तं मणुस्सा' इत्याहि टीअर्थ - ' से किं तं मणुस्सा' हे भगवन् मनुष्येना डेंटला लेहो उद्या छे ? या प्रश्नना उत्तरमां अनुश्री गौतमस्वाभीने हे छे ! 'मणुस्सा दुविधा पण्णत्ता' भनुष्यो मे अमरना ह्या छे. 'त' जहा' ते मे 3४ । प्रभा छे संमुच्छिम मणुखाय गत्र्भवतिय मणुस्साय' : सभूमि मनुष्य मने ખીજા ગર્ભજ મનુષ્ય આમાં શુક્ર અને શ્રોણિતના સ’મધ વિના જે મનુષ્યા ઉત્પન્ન થાય છે, તેએ સમૂઈિમ મનુષ્ય કહેવાય છે. અને શુક્ર શાણિતના संबंधधी ने उत्पन्न थाय छे ते गर्भ मनुष्य वाय छे. 'से किं तं समुच्छिम मनुस्सा' हे भगवन् ! सभूमि मनुष्योना डेटा सेहो उद्या हे ? या प्रश्ना
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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