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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ ३.२ सू.१४ नरकावासानां वर्णादिनिरूपणम् णामए अहिमडेइ वा गोमडेइ वा सुणगमडेइ वा मजारमडेई मणुस्लमडेइ वा महिसमडेइ वा मुसगमडेइ वा आसमडेइ वा हत्थिसडेइ वा सीह मडेइ वा वग्घमडेइ वा विगमडेइ दीविय मडेइ वा, मयकुहिय चिरविण? कुणिम वावण्ण दुब्भिगंधे असुइ विलीणविगय बीभत्थ दरिलणिज्जे किमिजालाउलसं सत्ते । भवे एयारूवे सिया ? जो इण समटे, गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढबीए णरगा एलो अणितरमा वेच अकंत तरगा चेव जाव अमणामतरगा चेन गंधेणं पन्नता, एवं जाव अहे सत्माए पुढवीए ॥ इमीले गं अंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णरया केरिसया फालेणं पन्नता? मोयमा! ले जहां णामए असिपत्तेइ वा खुरपत्तेइ बा कलंबचीरिया पत्तेइ वा लत्तग्गेइ वा कुंतरगेइ वा तोमरग्गेइ वा नारायस्गेइ का सूलग्गेइ वा लउलग्गेइ वा भिंडिपालग्गेइ वा सूचिकालावेइ वो कवियच्छूनइ वा विंचुय कंटएइ वा इंगालेइ वा जालई वा मुम्सुरेइ वा अञ्चित्ति वा अलाएइ वा सुद्धागणी वा, भवेश्या रूवे लिया ? जो इणट्रे समटे, गोयमा ! इमीले गं स्यणप्पभाए पुढचीए णरगा एत्तो आणिट्रतरा चेव जाव असणामतरगा चेव फालेणं पन्नत्ता । एवं जाव अहे लत्तमाए पुढवीए ॥सू०१४॥ छाया-एतस्यां खलु भदन्त ! रत्नप्रभायां पृथिव्यां नरकाः कीदृशा वर्णन प्रशंशाः ? कालाः कालावभासा गम्भीररोमहर्षाः भीमा उत्त्रासनकाः परमकृष्णा वर्णेन प्रज्ञप्ताः। एवं यावद्धः सप्तम्याम् । एतस्यां खल्ल रत्नप्रभायां पृथिव्याम् । नरकाः कीदृशा गन्धेन प्रज्ञप्ता ? गौतम ! स यथा नामकः अहिमृत इति वागोमृत इति वा शुनकमृत इति वा मार्जारमृत इति वा मनुष्षत, इति वा महिपमृत इति वा मृषामृतं इति वा अश्वमृत इति वा हस्तिमृत इति वा सिंहमृत इति वा व्याघ्रमृत इति वा वृकमृत इति वा द्वीपिकमृत इति वा मृतकुषित
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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