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________________ जीचाभिगमसूत्रे १७६ संठाणसंठिया पन्नत्ता' वे आवलिका वाह्या नका नानासंस्थान संस्थिताः प्रज्ञताः - कथिताः 'वं जहा' तद्यथा- 'अयको संठिया' अयः कोष्ठ संस्थिताः अयः कोgiries: neद्वत् संस्थिताः इत्यय कोष्ठमंस्थिता इति १ । 'पिपयणग संठिया' पिष्टपचनसंस्थिताः, यत्र सुरानिर्माणाय पिष्टादिकं पच्यते तत् पिष्टपचनकं तद्वत् संस्थिता इति पिष्टपचन संस्थिता २, तथा-कंदू संठिया' कन्दुसंस्थिताः कन्दुः कान्दविकस्य मिष्टान्नमाकपात्रम् दत् संस्थिताः ४ ' कडाइ संठिया' कटाहसंस्थिताः - कटाहः शाकादिपाचकः पात्रविशेषः उद्वत् संस्थिता इति पटास स्थिताः ५ 'थाली संदिश' स्थाली ओदनादि पाचनपात्रं तद्वत् संस्थिता इति स्थाली संस्थिताः ६ 'पिटरसंठिया' पिठरकं यत्र प्रभूतजन योग्यं धान्यादिकं पच्यते तद्वत् संस्थिता इति पिठरकसंस्थिता ७ किमियग संठिया' 'कृमिकसंस्थिताः' जीवविशेष युक्ताः इदं पदं पुस्तकान्तरे न लभ्यते पन्नन्ता' अनेक प्रकार के आगरों वाले है- 'तं जहा' जैसे- 'अयकोह संठिया' कितनेक लोहे के कोष्ठ के जैसे आकार वाले हैं कितनेक 'पिट्ठ पयणग संठिया' मदिरा बनाने के लिये जिसमें पिष्ट आदि पकाया जाता है उस वर्तन के जैसे आकार वाले हैं 'कंदु संठिया' कितनेक कन्दु - हलवाई के पाक पात्र के जैसे आकार वाले हैं 'लोही संठिया ' कितनेक लोही-तबा के जैसे आकार वाले है किनेक 'कडाह-मंठिया' कटाह - कडाही - के जैसे आकार वाले हैं 'थाली - संठिया' कितनेक थाली-ओदन पका ने के बरतन के जैसे आकार वाले हैं। कितनेक 'पिटर संठिया' जिसमें बहुत अधिक मनुष्यों के लिये भोजन आदि पकाया जाता है ऐसे पिठरक के जैसे आकार वाले हैं कितने 'कि मियम संठिया' कृमिक जैसे- आकार वाले हैं यह पद कहीं कहीं नहीं - छे 'अकोट खट्टिया' डेटला सोडन ष्ठना लेवा सरवाजा छे. हेटसा 'पिट्ट पयणग सं'ठिजा' भहिरा हा३ मनाववा भाटे मां पिष्ट-सोट विगेरे शंधवामां आवे छे. ते वासना देवा आमरना होय से 'कंदु संठिया ' કેટલાક કનું કદઈના રાંધવાના પાત્રના આકાર જેવા આકાર વાળા હાય છે 'लोहोस 'ठिया' કેટલાક લેાઢી—તવાના જેવા આકારવાળા છે. કેટલાક 'कडाहा संठिया' याना नेवा भारवाणा होय छे. 'थाली मठिया' टा ભાત મનાવવાના વાસણના આકાર જેવા આકારવાળા હાય છે, અને ala 'पिटर संठिया' भी वध रे भाणुसो भाटे लोन सामग्री बनावी शाय तेवा परत्ना लेवा भारवाणा होय छे, डेटला 'किमियग सठिया' भि नेवा भारत्राजा होय छे. आ यह हैटवाई श्रथम आवाम
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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