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________________ प्रमेयद्योतिकाटीका प्र०२ नपुंसकस्वरूपनिरूपणम् ५८३ पुढवीणेरइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा' यावद् द्वितीयशर्कराप्रभापृथिवीनैरयिकनपुंसका असख्येयगुणा भवन्ति, यावत्पदसग्राह्यस्यायमर्थ पष्टपृथिवीनार कनपुंसकापेक्षया पञ्चमपृथिवीनारकनपुंसका' असख्येयगुणा अधिका भवन्ति, तदपेक्षया चतुर्थपृथिवीनारकनपुंसका असंख्येयगुणा अधिका भवन्ति, तदपेक्षया तृतीयपृथिवीनार कनपुंसका असंख्येयगुणा अधिका भवन्ति, तपे - क्षया च द्वितीयशर्करापृथिवीनारकनपुंसका असख्येयगुणा अधिका भवन्तीति । द्वितीयनारकपृथिवीनैरयिकनपुंसकापेक्षया ‘अंतरदीवगमणुस्सण पुंसगाअसंखेज्जगुणा' अन्तरही पकमनुष्यनपुंसका असंख्येयगुणा अधिका भवन्तीति, गर्भजानामुच्चारादिसमुत्पन्नस मूर्च्छिममनुष्यापेक्षया तेषामसख्येयगुणत्वं बोध्यम् तत्र तेषामसख्येयगुणत्वेन समूर्छनसभवात्, अन्तरद्वीपजमनुष्यनपुसका है । "छपुढची रयणं सगा असं खेज्जगुणा " सप्तमनारक के नपुंसको की अपेक्षा छठीमा पृथिवी के जो नैरयिक नपुसंक है वे असंख्यात गुणे अधिक है. " जाव दोच्च पुढवी रइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा" यावत् द्वितीय पृथिवी के नैरयिक नपुंसक असख्यात गुणे अधिक है । यावत्पद से यहां यह अर्थ सगृहीत करके प्रकट किया गया है— छठवीं पृथ्वी के नैरयिक नपुंसको की अपेक्षा पंचम पृथिवी के जो नैरिक नपुंसक हैं वे असख्यात गुणे अधिक है. पंचम पृथिवी के नैरथिक नपुंसको की अपेक्षा चतुर्थ पृथिवी के नैरयिक नपुंसको की अपेक्षा तृतीय पृथिवी के नैरयिक नपुंसक असख्यातगुणे अधिक है तृतीय पृथिवी के नैरयिक नपुंसको की अपेक्षा द्वितीय पृथिवी के जो नैरयिकनपुंसक है वे असख्यात गुणो अधिक हैं । तथा द्वितीय पृथिवी के नारको की अपेक्षा जो " अंतर द्वीवग मणुस्स णपुंसगा असंखेज्जगुणा " अन्तर द्वीपज मनुष्यनपुंसक है वे असंख्यातगुणो अधिक है । ये गर्भज मनुष्यो के उच्चार प्रस्रवण-मलमूत्र आदि शरीर के मलो में उत्पन्न होने के कारण समूच्छिम मनुष्य असख्यात गुणे अधिक होते है. क्योंकि वहां इतने समूच्छित होते है अन्तर द्वीपज मनुष्यनपुंसको की अपेक्षा सव्वत्यो वा अहे सत्तम पुढवी नेरइयणपुंसगा” हे गौतम! सौथी सोछा अध. सप्तभी पृथ्वीना नैरयि! नपुस। छे "छडपुढवी णेरइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा” सातभा नरञ्जना નપુ ંસકા કરતાં છઠ્ઠી તમા નામની પૃથ્વીના જે નૈયિક નપુસકે છે તે અસ ખ્યાત ગણા पधारे छे “जाव दोच्च पुढवी रइयणपुंसगा असंखेज्जगुणा" यावत् भील पृथ्वीना नैर्યિક નપુસકો અયાત ગણા વધારે છે. અર્થાત્ અહિયાં યાવત પદ થી આ નીચ પ્રમાણે ના અર્થ સંગ્રહ કરીને બતાવેલ છે—છી પૃથ્વીના નૈયિક નપુંસકો કરતાં પાચમી પૃથ્વીના જે નૈરિયક નપુસકે છે, તેએ અસખ્યાત ગણા વધારે છે. પાંચમી પૃથ્વીના નૈયિક નપુ ંસકો કરતાં ચાથી પૃથ્વીના નૈરયિક નપુ ંસકા અસંખ્યાત ગણા વધારે છે. ચેાથી “પૃથ્વીના નૈરયિક નપુ ંસકા કરતા ત્રીજી પૃથ્વીના નૈયિક નપુ ંસક સખ્યાતગણા વધારે છે. ત્રીજી પૃથ્વીના नैरयिष्ठ नपुस । उरता गोल पृथ्वीना नैरयि नपुंसके। पुरता ? "अंतरदीवगमणुस्स पुं
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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