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________________ प्रमेयोतिकाटीका प्र०२ नपुंसकस्वरूपनिरूपणम् ५३९ स्थितिः प्रज्ञप्ता ± हे गौतम । विशेष चिन्तायां पृथिवीकायिकै केन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसकस्य जघन्येन स्थितिरन्तर्मुहूर्तमुत्कर्षेण द्वाविंगति वर्ष सहस्राणि, एवम् 'सव्वेसिं एगिंदिय पुंसगाणं ठिई भाणियव्वा' सर्वेषां शेषामप्तेजो वायुवनस्पत्ये केन्द्रियनपुंसकानां यस्य यावती स्थितिर्भवति तस्य तावती स्थितिर्भणितव्या - कथयितव्या, तथाहि —अप्कायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकस्य जघन्येनान्तर्मुहूर्तमुत्कर्षतः सप्तसहस्रवर्षाणि तैजस्कायिकै केन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसकस्य - जघन्येनान्तर्मुहूर्तमुत्कर्षतस्त्रीणि रात्रिन्दिवानि, वायुकायिकै केन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुसकस्य जघन्येन स्थितिरन्तर्मुहूर्तमुत्कर्षतस्त्रीणि वर्षसहस्राणि, वनस्पति कायिकैकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसकस्य जघन्येनान्तर्मुहूतमुत्कर्षतो दशवर्षसहस्राणि । 'बेइन्दिय तेदिय चउरिदिय णपुंसगाणं ठिई भाणियव्वा' द्वीन्द्रियत्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रियनपुंसकानां स्थितिर्यावती यस्य भवति तावती स्थितिस्तस्या भणितव्या — कथकायिक एकेन्द्रिय जीव तिर्यग्योनिक नपुंसक की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति बाइस हजार वर्ष की है, 'सव्वेसिं एगिंदिय णपुंसगाणं ठिई भाणियन्चा' बाकी के जो एकेन्द्रियतिर्यग्योनिक तेज वायु और वनस्पति नपुंसक है उन सबकी जिसकी जितनी स्थिति है वह यहां कहनी चाहिये, जैसे – अकायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसककी जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्टस्थिति सात हजार वर्ष की है । तेजस्कायिक की जघन्यस्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति तीन रात दिन की है वायुकायिक एकेन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसक की जघन्यस्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति तीन हजार वर्ष की है । वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय नपुंसक की जघन्यस्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्टस्थिति १० दस हजार वर्ष की है. 'बेईदियतेइंदिय चउरिंदिय णपुंसगाणं ठिई भाणियव्वा बेइंद्रिय तेइन्द्रिय चतुरिन्द्रियो की जिसकी जितनी स्थिति हो वह यहाँ कहनी चाहिये "पुढवी काय एगिदिय तिरिक्ख जोणिय पुंसगस्स ण भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता" डे ભગવન પૃથ્વી કાયિક એક ઈંદ્રિય વાળા તિય ચૈાનિક નપુ સકાની સ્થિતિ કેટલાક કાળની કહેવામા भावी छे ? “जहणणेणं अतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बावीस वाससहस्साई' विशेष अमरथी વિચારતાં પૃથ્વીકાયિક એક ઇંદ્રિયવાળા તિય ચૈાનિક નપુ સક જવાની જઘન્ય સ્થિતિ એક अतभुहूर्तनी छे भने उत्कृष्ट स्थिति मावीस हुनर वर्षानी छे " सव्वेसि एगिंदिय णपुंसगाणं ठिई भाणियव्वा" माडीना में भेद्रिय वाणा तिर्यग्योनि तेस्य, वायुप्राएँ, मने વનસ્પતિ કાયિક નપુસકો છે તે સઘળાની એટલે કે જેની જેટલી સ્થિતિ હાય તેની તેટલી અહિંયાં સમજીલેવી જેમકે કાયિક એક ઈંદ્રિયવાળા તિય*ગ્યેાનિક નપુસકોની જધન્યસ્થિતિ એક અત દ્યૂત ની છે, અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ગ્રાત જાર વર્ષની છે તેજસ્કાયિકની જઘન્ય સ્થિતિ એક અતસુતની અને ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિ ત્રણ રાતદિવસની છે. વાયુકાયિક એકછ દ્રિયવાળા, તિય ચૈાનિક નપુસકની જઘન્યસ્થિતિ એક અંતર્મુહૂતની છે, અને ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિ ત્રણ જાર વર્ષની છે વનસ્પતિકાયિક એક ઇંદ્રિયવાળા નપુ સાની જઘન્યસ્થિતિ એક અંતર્મુહૂતની છે, भने उत्हृष्टस्थिति १० हसन्नर वर्षानी छे “बेइदियतेइंदियच उरिदियणपुंसगाणं ठिई भाणि - यव्वा" मे छद्रियवाणा, त्राण ४द्रियवाजा यार दियवाजा, अवनी मेनी भेटली स्थिति हाय તેની તેટલી સ્થિતિ અહિયાં કહેવી જોઈએ. જેમકે-એઇન્દ્રિયવાળા તિયગ્યેાનિક નપુ ંસકાની
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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