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________________ जीवामिममसूत्रे ५३० , तं घेईदियति रिक्खजोणियण पुंसगा' अथ के ते द्वीन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः १ इति प्रश्नः, उत्तरयति - 'वे इंदिय तिरिक्खजोणियणपुंसगा अणेगविहा पन्नत्ता' हीन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसका अनेकविधाः अनेकप्रकारका प्रज्ञप्ताः कथिताः 'फुलाकिमिया जाव समुहलिक्खा' इत्यादि प्रज्ञापनायां प्रथमपदोक्ता सर्वेऽत्र ग्राह्याः 'से त वेइंदियतिरिक्खजोणियण पुंसगा' ते एते द्वीन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसका निरूपिता इति । एवं ते इंदिया वि चउरिंदिया वि एवम्-द्वीन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकवदेव तेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसकास्तथा चतुरिन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः अपि निरूपणीयाः, प्रथमप्रतिपत्तीयद्वीन्द्रियादिप्रकरण प्रज्ञापनातिदेशेन प्रोक्तमेवात्रानुसन्धेयमिति । चतुरिन्द्रियतिर्यग्योनिकान् निरूप्य पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकान् निरूपयितुं प्रश्न यन्नाह - 'से किं तं ' इत्यादि, 'से किं तं पंचिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' अथ के ते पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसका 2 इति प्रश्नः, उत्तरयति-'पंचिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसंगाग्योनिक नपुंसको का कथन है, " से किं तं इंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा" भदन्त । दो इन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसक कितने प्रकार के होते है ? हे गौतम ! “वेइंदियतिरिक्खजोणियण पुंसगा अणेगविहा पण्णत्ता' दो इन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसक अनेक प्रकार के कहे गये है । जैसे - “ पुलाकि मिया जाव समुहलिखा " इत्यादि प्रज्ञापनाके प्रथम पद में कहे गये सब यहाँ समझलेना चाहिये । ' से तं वेइंदिय तिरिक्ख जोणिया ' "इस प्रकार से दो इन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसको के सम्बन्ध का यह कथन समाप्त हुआ " एवं इंदिया वि चउरिंदिया वि" द्वीन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसकों के जैसे ही ते इन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसक और चौइन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसक भी जानना चाहिये । पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसको का निरूपण कहते है- " से किं तं पंचिदियतिरिक्खजोणियणपुसगा" हे भदन्त ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसक कितने प्रकार के होते है ? 'गोयमा' हे गौतम! “पंचिंदिय " से किं त बेइदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा" हे भगवन् मे छद्रियो वाजा तिर्यग्यो निः नपुंसठी डेटला अअरना होय छे ? "गोयमा !” डे गौतम ! 'बेइंदियतिरिक्खजोणियपुंसा अगविद्या पण्णत्ता" मे छू द्रिय वाजा तिर्यग्योनिः नपुंस ने प्रारनाम्या छे. पुलाकिमि जाव समुह लिक्खा" इत्यादि प्रज्ञायना सूत्रना पडेसा पहला अडेवाभां याच्या प्रभा] या संबंधां तमाम अथन मडियां समल तेवु " से तं बेइंदियतिरिक्ख'जोणिया' मा प्रभाहो मे छद्रिय वांजा तिर्यग्योनिङ नयुं सोना समधनु स्थन सभाप्त थयु. "एव तेइंदिया वि चउरिंदिया वि” मे द्रिय वाजा तिर्यग्योनि नपुं सोना अथन પ્રમાણે જ ત્રણ ઇંદ્રિયો વાળા તિશ્યોનિક નપુંસકો અને ચાર ઈદ્રિય વાળા તિર્યંચ્યોનિક નપુ સાનુ નિરૂપણુ સમજી લેવું '' હવે પાંચ ઇન્દ્રિય વાળા તિર્યંગ્યાનિક નપુ સકેાનુ નિરૂપણુ किं तं पचिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा” हे भगवन् पांच નપુંસકા કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કરવામાં આવે છે.— “સે इंद्रियो वाजा तिर्यग्योनि ગૌતમ સ્વામીને કહે છે કે
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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