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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र० २ पुरुषाणान्तरं कालनिरूपणम् ४९१ 'जाव अase पोरगलपरियहं देणं' यावदपार्द्धपुद्रलपरावर्त्त देशोनम् यावत्पदेन'कालओ खेतओ अनंता लोगा' कालतः क्षेत्रतोऽनन्ता लोकाः, एतदन्तस्य ग्रहणं भवती ति सामान्यतो मनुष्यपुरुषत्वस्यान्तरमिति । 'कम्म भूमिगाणं जाव विदेहो जाव धम्मचरणे एक्को समओ से जहित्थीणं जाव अंतरदीवगाणं' कर्मभूमिकानां मनुष्यपुरुषाणां यावद् विदेहो यावद् धर्मचरणे एकः समयः शेषं यथा स्त्रीणाम् यावदन्तरद्वीपकानाम्, प्रथमयावत्पदेन भरतैरवतपूर्वापरविदेहक्षेत्रपर्यन्त सकलकर्मभूमिकमनुष्य पुरुषाणां संग्रह: तथा - द्वितीययावत्पदेन मकर्मभूमिकानां हैमवतादन्तरद्वीपपर्यन्तानां संग्रहो भवति, तथाच कर्मभूमिकमनुष्यपुरुषाणामकर्मभूमिकमनुष्य पुरुषाणां च सर्वेषां यथा मनुष्यस्त्रीणां कर्म भूमिका - कर्मभूमिकानामन्तरं कथितं तथैव यत्रापि ज्ञातव्यम् । तथाहि—सामान्यतो मनुष्यस्य क्षेत्रमाश्रित्य जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तमन्तरं भवति, तच्च से जो अन्तर अनन्त काल तक का होना कहा गया है वह इसमें "अणताओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ जाव अवड्ढ पोग्गलपरियहं देखणं" काल से अनन्त उत्सर्पिणियां अवस पिणियां हो जाती है यावत् क्षेत्र से - अनन्त लोग हो जाते हैं वह देशोन अ - पुद्गल परावर्त होता है" इस अभिप्राय से कहा गया है “कम्मभूमिगाणं जाव विदेहो जाव धम्मचरणे एक्को समओ सेसं जहित्थीणं जाव अंतरदीवगाणं" यहां प्रथम यावत्पद से भरत ऐरवत पूर्वविदेह अपरविदेह समस्त कर्म भूमि पुरुषों का और द्वितीय यावत्पद से कर्मभूमि हैमवत हैरण्यवत वर्ष रम्यक वर्ष देवकुरू उत्तरकुरू मनुष्य पुरुषों का ग्रहण हुआ है इस प्रकार कर्म भूमिके मनुष्य पुरुषों के पुरुषत्व का अन्तर अपनी २ स्त्रियों के प्रकरण में जैसा र अन्तर कहा गया है वैसा २ अन्तर है, नैसे—सामान्य मनुष्य पुरुष का अन्तर क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त का होता तर हवा हवाभाव्यु छे, ते सभां “अणंताओ उस्सप्पिणी ओसप्पिणीओ जाव अवड्ढपोग्गल परियट्ठ देसुणं" अणथी अनंत उत्सर्पिलायो भने अवसर्पिथीया था लय है. યાવતા ક્ષેત્રથી અનંત લેાકેા થઈ જાય છે. તે દેશેાન પુદ્ગલ પરાવ થાય છે એ अभिप्रायथी छे. "कस्मभूमिगाणं जाव विदेहो जाव धम्मचरणे एकको समओ सेर्स नहित्थीणं नाव अंतरदीवगाणं" सहियां पडेला यावत्पथी भरत अरवत, पूर्वવિદેહ પર વિદેહના સઘળા ૪ ભૂમિજ પુરૂષો અને બીજા યાવપદથી અકમ ભૂમિ જ હૈમવત હૈમણ્યવત વર્ષી, રમ્યક વર્ષી, દેવકુરૂ, ઉત્તરકુના મનુષ્ય પુરુષો ગ્રહણ કરાયા છે. આ રીતે કભૂમિના મનુષ્ય પુરુષોના પુરુષપણાનુ અને અકમભૂમિના મનુષ્ય પુરુષોના પુરુષપણાનું અંતર પાતપાતાની બ્રિયેાના પ્રકરણમાં જે જે પ્રમાણેનુ अंतर वामां आवे छे. તે તે પ્રકારથી સમજી લેવું જેમકે—સામાન્ય અનુષ્ય પુરુષનું અંતર ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી જઘન્યથી અંતર્મુહૂત તુ હાય છે. તે ·
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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