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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्रति० २ पुरुषस्थित्यादिनिरूपणम् ४७९ विदेह अवर विदेह' यावत् पूर्वविदेहपिरविदेह पुरुषाणाम्' अवस्थाने तात्पर्यन्तमत्र वाच्यम् । यावत्पदेन ' भरतैरवतक्षेत्रयोर्ग्रहण भवेति भैरतैरवतपूर्वविदेहापरविदेह पुरुपाणी क्षेत्रं प्रतोत्य जघन्येनान्तर्मुहूर्तमुत्कर्षेणे पूर्वकोटि पृथक्वाभ्यधिकीनि त्रीणि पल्योपमानि; धर्मचरणं प्रतीत्य जघन्येनान्तर्मुहूर्तमुत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटिरिति । अकभभूमिगमणुस्संपुरिसाणं जहा अकम्भभूमिगमणुस्सित्थीण" "अकर्मभूमिकमनुष्य पुरुषाणामेवस्थान यथा अकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीणां कथित तथैव । 'जा' अंतरदीवगाणं' यावदन्तरदीपकानाम् अन्तरपिकमनुष्यपुरुषपर्यन्तानामवस्थानं तत्तत् स्त्रीप्रकरणवदेव-- ज्ञातव्यम् । ---अत्र--यावत्पदेन हैमवतैरण्यक्त-हारवर्ष रम्यकवर्षदेवकुरूत्तरकुरुपुरुषाणां , ग्रहणं " भवति तथाहि-मनुष्य पुरुषाणामवस्थान तथा वक्तव्यं यावत् । भरत... ऐरवत, पूर्व विदेह. और ; अपर :, विदेड : तक: के. पुरुषों । की। कायस्थिति, का भी काल -ऐसा ही जानना चाहिये, अकम्मभूमिगमणुस्सपुरिसाणं- जहा अकम्मभूमिगमणुस्सित्थीण", अकुम भूमिक, मनुष्य, पुरुषों की: कायस्थिति का काल जैसा अकर्म भूमिक मनुष्य , लियो का ,कायस्थिति काल कहा, गया है वैसा ही। जानना चाहिए और अन्तर द्वीप रूप अमभूभिक मनुष्या स्त्रियों की कायस्थिति, काः काल के जैसा ही काल यावत अन्तर द्वीपज मनुष्यो की कायस्थिति का भी जानना चाहिये इस प्रकार यावत्पद से हैमवत हैरण्यवत-हरिवर्ष.. सम्यकवर्ष-देवकुरु. उत्तरकुरू और अन्तरदीप अकर्म भूमिक मनुष्य पुरुषों की कायस्थिति का . काल जैसा २ वहांर की मनुष्य स्त्रियों की कार्यस्थिति काः काला कहा गया है वैसा २ ही , जानना चाहिये. ऐसा इस कथन का निष्कर्षार्थ है स्त्रियों की स्थिति : के जैसा ही अवस्थान भी अन्तरद्वीपज मनुष्यपुरुषों तक का जानना चाहिये इस कथन का વધત. 'ત” ભિત ઐરવર્ત પૂર્વ વિદડી અને અપવિ. સુધીનાં પુરૂની કાર્યસ્થિતિને पण प्रभार संभ aisotisgarh Fi! - 1. ! ! St. In " . . . . . : is "अकम्मभूमिकमणुस्सपुरिसाणा जहां अकम्भभूमिगर्मणुस्सित्धीण" भभूमिका મંનુષ્ય પુરુષની કાયસ્થિતિને કાળ જેમ અકર્મભૂમિકે મjષ્ય સ્ત્રિનો કાયસ્થિતિ કાળ કહેવામા આવેલ છે, એજ પ્રમાણેને સમજ અને અતરદ્વીય રૂપ"અકર્મ ભૂમિજ - મનુષ્ય સ્ત્રિની કાયસ્થિતિના કાળ પ્રમાણેનેજ કાળ યાવતું અંતરદ્વીપજ મનુષ્યની કાય स्थितिमा 14 समलव २ रीता यावत् ।। ५४था भक्त; ३५यवत्-रिवर्ष, મ્યક વર્ષ દેવકુરૂ, ઉત્તરકુરૂ, અને અંતરદ્વીપ અકર્મભૂમિના મઝુષ્ય પુરુષની કાયસ્થિતિને કાળ જે જે રીતે ત્યાં સ્થાન મનુષ્ય શ્વિની કાયસિસ્થતિને કાળ કહ્યો છે, એ એ રીતે સમજી લેવા. આ પ્રમાણેને આ કથનને ભાવાર્થ છે સ્ત્રિયાની કાર્યસ્થિતિ પ્રમાણે જ અવ१२थान मतही मनुष्य पुरुष सुधीसभाg.
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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