SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 492
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७० जोवाभिगमसूत्रे प्रतीत्य जघन्ये नाऽन्तर्मुहूर्तमुत्कर्षतो देशोना पूर्वकोटि· स्थितिरिति मनुष्यपुरुषप्रकरणम् ।। 'देवपुरिसाण वि जाव सव्वट्ठसिद्धाणं ति ताव ठिई जहा पण्णवणाए ठिइपए तहा भाणियव्या' देवपुरुषाणामपि यावत् सर्वार्थसिद्धकानामिति तावत्-अमरकुमारदेवपुरुषादारभ्य सर्वार्थसिद्धदेवपुरुषपर्यन्तानां स्थितिः यथा प्रज्ञापनायां चतुर्थे स्थितिपदे कथिता तथाऽत्रापि देवपुरुषाणां स्थितिवक्तव्येति, तथाहि-देवपुरुषाणां सामान्यतो जघन्येन स्थितिर्दशवर्षसहस्राणि, उत्कर्पण त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि, विशेषचिन्तायाम् , असुरकुमारपुरुषाणां जघन्यतो दशवर्पसहस्राणि, उत्क पत. सातिरेकमेकं पल्योपमम् । नागकुमारादिस्तनितकुमारपर्यन्तानां नवाना भवनपतिदेवपुरुषाणां जघन्यतो दशवर्पसहस्राणि उत्कर्पतो देशोने द्वे पल्योपमे । वानव्यन्तरपुरुषाणां जघन्यतो दशवर्षसहस्राणि उत्कर्षतः पल्योपमम् । ज्योतिष्कदेवपुरुषाणां जघन्यतः पल्योपमस्याष्टमो भागः कोटि रूप है । संहरण की अपेक्षा जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि की स्थिति है । इस प्रकार से यह मनुष्य प्रकरण समाप्त हुआ । "देवपुरिसाण वि जाव सव्वट्ठसिद्धाणं ति ताव ठिई" देव पुरुषो की भी यावत् तावत् असुरकुमार देवपुरुषों से लेकर सर्वार्थ सिद्ध देव पुरुषों तक की स्थिति का कथन "जहा पण्णवणाए ठिइपए तहा भाणियव्वा" जैसा- प्रज्ञापना सूत्र के चतुर्थ स्थिति पद में किया गया है वैसा ही वह यहां पर भी कहलेना चाहिये-इस प्रकार देव पुरुषों की सामान्य रूप से जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरो. पम की है । विशेष रूप से जब देवों की स्थिति का विचार किया जाता है तो वह इस प्रकार से है-असुरकुमार देव पुरुषों की जघन्य से स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट से स्थिति कुछ अधिक एक पल्योपम की है। नागकुमार से लेकर स्तनितकुमार पर्यन्त नौ ९, भवनपति देवपुरुषों की जघन्य से स्थिति दस हजार वर्षों की और उत्कृष्ट से कुछ कम दो पल्योपम की है । वानव्यन्तर पुरुषों की जघन्य से दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट से છે અને ઉત્કૃષ્ટથી દેશનપૂર્વ કેટિરૂપ છે સંહરણની અપેક્ષાથી જઘન્યથી એક અંતમુહર્ત અને ઉત્કૃષ્ટથી દેશના પૂર્વ કેટિની સ્થિતિ છે આ રીતે આ મનુષ્ય પ્રકરણ સમાપ્ત થયું "देव पुरिसाण वि जाव सव्वदृसिद्धाणं ति ताव ठिई" वपुषानी ५५ यावत् તાવત અસુરકુમાર દેવપુરૂષોથી લઈએ સવાર્થસિદ્ધ વિમાનના દેવપુરૂષો પર્ય તના દેવપુરૂષોની स्थितिनुस्थन “जहा पण्णवणाप ठिइपए तही भाणियचा" प्रज्ञापन सूत्रना याथा સ્થિતિપદમાં જે પ્રમાણે કહેલ છે એજ પ્રમાણેનું કથન અહિયાં પણ સમજી લેવું આ રીતે દેવપુરૂષની સામાન્યરૂપથી જઘન્ય સ્થિતિ દસંહજાર ' વર્ષની છે અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ કંઈક વધારે એક પલ્યોપમની છે નાગકુમારથી લઈને સ્વનિતકુમાર પર્વતના નવનિકાય ભવનપતિ દેવપુરુષોની જવન્ય સ્થિતિ દસ હજાર વર્ષની છે અને ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિ કંઈક ઓછી બે પલ્યોપમની છે વનવ્યંતર દેવપુરુષોની જઘન્ય સ્થિતિ દસ હજાર વર્ષની અને ઉત્કૃષ્ટ
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy