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________________ همه نامه ها و نمونه ی ی ی ی ی ی ی ی ی ی و www ४५० जीवाभिगमसूत्र वा विशेषाधिका वेति प्रश्नः, भगवानाह----'गोमया' इत्यादि, 'गोमया' हे गौतम ! 'सव्वत्योवा तरदीवगअकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ' सर्वाभ्यः स्त्रीभ्यः स्तोका अन्तरद्वीपकाकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रीयो भवन्ति 'देवकुरूत्तरकुरु अकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ दो वि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ' देवकुरूत्तरकुर्वकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियो द्वय्योऽपि तुल्याः, अन्तरद्वीपकरुयपेक्षया सरव्यातगुणा अधिका भवन्ति, तथा-'हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ दो वि तुल्काओ संखेज्जगुणाओ' हरिवर्परम्यकवकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियो दुय्योऽपि तुल्याः पूर्वापेक्षया सस्येयगुणा अधिका भवन्ति 'हेमवयएरण्णवयवासयकम्मभूमिग मणुस्सित्थीओ दो वि सखेज्जगुणाओ' हैमवतैरण्यवतवर्षाकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियो । दृग्योऽपि हरिवपरम्यकवर्पकस्यपेक्षया सख्येयगुणा अधिका भवन्तीति 'भरहेरवयवासकम्मभमिगमणुम्सित्थीओ दो वि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ' भरतैरवतवर्पकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियो इस प्रश्न के उत्तरमें प्रभु गौतम से कहते हैं- "गोमया? सव्वत्थोवा अंतरदीवगअकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ" सब से कम अन्तरद्वीप रूप अकर्मभूमिकी मनुष्य स्त्रियां है "देवकुरूत्तरकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ दो वि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ' देवकुरु और उत्तर कुरुरूप अकर्मभूमिकी मनुष्यस्त्रियां अन्तरद्वीप की मनुष्य स्त्रियों की अपेक्षा संख्यात गुणी अधिक है । स्वक्षेत्र की अपेक्षा दोनों तुल्य है "हरिवासरम्मगवासअकम्ममूमिगमणुस्सित्थीओ दो वि तुल्ळाओ संखेज्जगुणाओ" हरिवर्ष और रम्यक वर्ष रूप अकर्म भामेकी मनुष्य स्त्रीयां देवकुरु और उत्तरकुरु की मनुष्य स्त्रियों की अपेक्षा परस्पर में तुल्य होती हुई सख्यात गुणी अधिक है । "हेमवयएरण्णवयवासअकम्मभूमिमणुस्सित्थीओ दो वि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ' हैमवत और ऐरण्यवत रूप अकर्ममूमिकी मनुष्यस्त्रियों परस्पर दोनों समान हैं किन्तु हरिवर्प और रम्यक वर्ष की मनुष्यस्त्रियों से सख्यात गुणी अधिक हैं । "भरहेरवयवासकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ दो मा प्रश्नाना उत्तम प्रभु गौतमस्वामीन ४४ छ -“गोयमा ! सव्वत्थोवा अंतरदी. वगअकम्मभूमिगमणुस्सित्थीमो' सौथी माछी मतद५३५ सम अभिनी मनुष्यालयो छ "देवकुरुत्तरकुरु अकम्मभूमिग मणुस्सित्धीओ दो वि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ" देव. કુર અને ઉત્તર કુરૂ રૂપ અકર્મભૂમિની મનુષ્ય પ્રિયે અંતરદ્વીપની મનુષ્ય સ્ત્રિઓકરતાં सध्यातगणी पधारे छे पाताना क्षेत्रनी अपेक्षा ये माने समान छ. "हरीवासरम्मगवासअकम्मभूमिग मणुस्सित्थीओ दो वि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ" रव, सन २भ्य वर्ष રૂ૫ અકર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રિયો દેવકુફે અને ઉત્તરકુરૂની મનુષ્ય શ્રિ કરતાં પરસ્પર समान छ भने सयातगणी पधारे छे 'हेमवयपरण्णवयवास अकम्भूमिगमणुस्लित्थीओदो वि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ" भक्त मने मे२९यवत३५ भभूभिनी मनुष्य रियो ५२२५२ બને સમાન છે. પરંતુ હરિવર્ષ અને રમ્યક વર્ષની મનુષ્ય શ્રિયેથી સંખ્યાત ગણી વધારે छ. "भरहेरवयवासकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ दो वि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ" पूर्व
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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