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________________ ર૪ जोषाभिगमसूत्रे, (महिला) भगवानाह- गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'जम्मणं पडुच्च' तत्रैव हैमवतैरण्यवतयोः, जन्मप्रतीत्य-जन्माश्रयणेन 'जहन्नेण देखणं पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं' जघन्येन देशोन पल्योपमं पल्योपमस्यासंख्येयभागेनोनम् पल्योपमस्य असंख्येय भागात्मकदेशेन ऊनं पल्योपमं यावत् हैमवताधकर्मभूमिकमनुष्यत्रीणां तादृशमनुष्यत्रीरूपेणाव स्थानं भवतीति भावः। 'उक्कोसेणं पलिओचम उत्कर्षेण संपूर्ण पल्योपमं यावदवस्थानमिति 'संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्त' सहरणं प्रतीत्य-सहरणापेक्षया तु जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् अन्तमुहूर्त्तायुः शेपे एव तस्याः संहरणभावात 'उक्कोसेणं पलिओवमं देखणाए पुचकोडीए अभडियं' उत्कर्पण देशोनया पूर्वकोट्याऽभ्यधिकमेकं पल्योपमं यावदवस्थानं भवति तच्चावस्थानमान देशोनपूर्वकोटयायुष्कायास्तत्र सहरणे तत्रैव च मृत्वोत्पन्नाया ज्ञातव्यम् । 'हरिवास रम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्सित्थी णं भंते ! हरिवासरम्पगवासअम्ममिगमणुस्सि स्थिति कालओ कियच्चिरं भवई' हरिवर्षरम्यकवर्षाकर्मभूमिकम नुष्यस्त्रीणा भदन्त ! हरिवपरस्त्रियों के रूप में रहने का काल कितना है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं देसूण पलिओवमं पलिओवमस्स असंखेज्जहभागेणं ऊणगं''हे गौतम! इनका अवस्थान काल जघन्य से तो देशोन पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन एक पल्योपम का है और 'उक्कोसेणं पलिओवम' उत्कृष्ट से पूरा एक पल्योपम का है अधिक से अधिक इतने समय तक हैमवत और ऐरण्यवत की मनुष्य स्त्री मनुष्य स्त्री रूप से अवस्थित रह सकती हैं । "संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहुत्त उक्को सेण पलिओवमं देसूणाए पुन्चकोडीए अभहियं" संहरण की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त प्रमाण मायु के शेष रहते उसका संहरण हो जाने के कारण जघन्य से एक अन्तर्मुहर्त तक और उत्कृष्ट से देशोन पूर्व कोटि से अधिक एक पल्योपम तक रहती है यह प्रमाण देशोन पूर्वकोटि आयु की स्त्री का संहवणहोने पर वह वहीं मरकर वहीं उत्पन्न होने वाली स्त्री की अपेक्षा से समझना चाहिये । "हरिवास रम्मग वास अकम्म भूमिगमणुस्सित्थीणं भते ।" हे भदन्त ! जो हरिवर्ष और रम्यक वर्ष की आकर्ष स्वामीन ४ छ-"गोयमा ! जम्मणं पहुच्च जहण्णेणं देसूणं पालोवमं पलिओघमस्स असं. खेजहभागेणं ऊणगं" गीतमा तयाने। भवस्था धन्यथा शान पक्ष्यापभना भस'. भ्यातमा लागथी.डीन मे पक्ष्या५मन छ भने "उफ्कोसेणं पलिओवमं थी पूरे। એક પલ્યોપમને છે વધારેમાં વધારે આટલાકાળ સુધી હૈમવત અને અરણ્યવતની મનુષ્ય स्त्री मनुष्य स्त्री पाथी २४ी शछे “संहरण पढच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओचमं देरणाए पुवकोडीए अभहिय" स २६नी अपेक्षाथी मतभुइत अमानु આયુષ્ય બાકી રહે ત્યારે તેનું સ હરણ થઈ જવાના કારણથી જઘન્યથી એક આ તમુહૂત સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી દેશોન પૂર્વકેટિ થી વધારે પલ્યોપમ સુધી રહે છે. આ પ્રમાણ દેશના પૂર્વેકેટિની આયુષ્યવાળી સ્ત્રીનું સંહરણ થાય ત્યારે તે ત્યાં જ મારીને ત્યાં જ ઉત્પન્ન થવા વાળી स्त्रीनी अपेक्षाथी समान. "हरिवासरम्मगवास अकम्मभूमिगमणुस्सित्थी णं भंते !
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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