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________________ ૧૮૦ जीवाभिगमसूत्रे द्विविधाः - द्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः कथिता, वायुरेव कायः शरीर येषां ते वायुकायाः वायुकाया एव वायुकायिका स्ते च द्विप्रकारका भवन्तीत्युत्तरम् । द्वैविध्यमेव दर्शयति- 'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा ' तद्यथा - सुहुमवा उक्काइया य वायरवाउकाइया य' सूक्ष्मवायुकाश्च बादरवायुकायिकाश्च सूक्ष्मत्वं बादरत्वं च तादृशनामकर्मोदयात् । तत्र सूक्ष्मवायुकायिकान् दर्शयितुमाह - 'सुहुम ०' इत्यादि, 'सुकुमवाउकाइया' जहा मृहुमते काइया' सूक्ष्मवायुकायिका यथा सूक्ष्मतेजस्कायिकाः, यथा सूक्ष्मतेजस्कायिकानां शरीरादि च्यवनान्तद्वाराणि कथितानि तथैव सूक्ष्मवायुकायिकानामपि तानि द्वाराणि तथैव वक्तव्यानि । केवलं यदंशे वैलक्षण्यं तद्दर्शयति'णवरं' इत्यादि, 'णवरं सरीरा पडागसंठिया' नवर केवलं सूक्ष्मवायुकायिकानां शरीराणि पताकासस्थानयुक्तानि भवन्तीति ज्ञातव्यम् । अन्यत्सर्वं सूक्ष्मपृथिवीकायिकवदेव ज्ञातव्यम् । 'एगगइया दुआगइया' एकगतिका दयागतिकाः, सूक्ष्मवायुकायिकात् उदवृत्त्य तिर्यग्गतिमात्रे गमनादेकगतिका', तथा तिर्यड्मनुष्यगतिभ्य उद्वृत्त्य सूक्ष्मवायुकायिके आगमनादुद्द्यागतिकाः कायिक दो प्रकार के कहे गये हैं- वायु ही जिन जीवो का शरीर होता है वे वायुकाय हैं और वायुकाय ही वायुकायिक हैं । ये इस प्रकार से दो प्रकार के हैं- “मुहुमवाउक्काइया य वायर वाउक्काइया य" सूक्ष्म वायुकायिक और बादर वायुकायिक यहां पर भी सूक्ष्मता और बादरता सूक्ष्म और बादर नामकर्म के अधीन है इनमें 'हुमवाउकाइया जहा सुहुतेककाइया" सूक्ष्मवायुकायिकों का वर्णन सूक्ष्म तेजस्कायिकों के जैसा ही है. अतः सूक्ष्मतेजस्कायिकों के जिस प्रकार से शरीरादि च्यवनान्त द्वार वर्णित हुए हैं. उसी ' प्रकार से इनके भी ये द्वार वर्णित कर लेना चाहिये । परन्तु " सरीरा पडागसंठिया" इनके शरीर पताका के जैसे आकार वाले होते हैं। बाकी का और सब कथन सूक्ष्मपृथिवीकायिकों के जैसे ही है | "एगगइया दुआगइया" ये जीव एक गतिक होते हैं, क्योंकि सूक्ष्म वायुकायिक से उद्घृत हुए जीव केवल एक तिर्यग्गति में ही उत्पन्न होते हैं । तथा तिर्यञ्च और मनुष्य गति से "वाकया दुविद्या पण्णत्ता" गौतम वायुआय कवा मे प्रारना छे, "तं जहा " ते मे प्रारो भा प्रभाऐ छे "सुहुम वाउक्काइया य वायर वा उक्काइया य" सूक्ष्म वायुायि અને બાદર વાયુકાયિક અહિયાં પણુ સૂક્ષ્મ પણુ અને ખદર પશુ સૂક્ષ્મ અને ખાદર નામકમ ને अधीन है तेभ सभवु तेभां "सुहुम वाउफ्फाइया जहा सुहुम उक्काइया" सूक्ष्म વાયુકાયિકાનું વણુ ન સૂક્ષ્મ તેજસ્કાયિકાના કથન પ્રમાણે જ છે. તેથી સૂક્ષ્મ તેજ કાયિકાના શરીર દ્વારથી લઈને ચ્યવનદ્વાર સુધીનુ જે પ્રમાણે કથન કર્યું" છે, એજ પ્રમાણે આ સૂક્ષ્મ वायुायिना ते मधान द्वारा स्थन सभन्न परंतु "सरीरा पडागसंठिया" तेथेोनुं શરીર પતાકા–કત્રજાના આકાર જેવુ હેય છે તે આ કથન સિવાય બાકીનુ સઘળું કથન સૂક્ષ્મ पृथ्वीअय छोना स्थन प्रभाछे देखो "पगगइया दुआगश्या" मा वो थे! गतिવાળા હોય છે, કેમકે સૂક્ષ્મ વાયુકાયિકા માંથી નીકળેલા જીવા કેવળ એક તિય ગતિમાં જ
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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