SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५८ । जीवाभिगमसूत्रे प्रसिद्धवृक्षो न ग्राह्यः अस्य एकास्थिकत्वात् अतः आमलकशब्देन बहुबीजवृक्षविशेषस्तदन्यो गृह्यते (लकुच) (वडहल) इति प्रसिद्वो गृह्यते, अयमपि बहुबीजवृक्षविशेषः, 'जे यावन्ने तहप्पगारा' ये चान्ये तथाप्रकारा. कपित्थादि सदृशा वृक्षा उपलभ्यन्ते तेऽपि बहवीजवृक्षतयैव प्रतिपत्तव्याः । 'एएंसि णं मूलावि असंखेज्जजीविया जाव फला बहवीयगा' एतेषाम् अस्थिकतेन्दुकादीनां वृक्षाणां मूलान्यपि असंख्येयजीवाधिकरणानि भवन्ति यावत्पदेन कन्दादारभ्य पुष्पपर्यन्ता. संगृह्यन्ते ते पूर्ववद् वाच्यानि, तथाहि-कन्दादयः प्रवालान्ता असंख्येयजीवा भवन्ति, पत्राणि प्रत्येकजीवानि से तं बहुवीयगा' ते एते वहवीजका वृक्षा. कथिताः । ‘से त्तं रुक्खा' ते एते वृक्षाः सामान्यतः कथिता इति । 'एवं जहा "धवे" धव नाम का वृक्ष विगेप भी बहुवीज वृक्ष है । यहां आमलक शब्द से लोक प्रसिद्ध मामले का वृक्ष नहीं लिया जाता है क्योंकि यह एकास्थिक-एक वीज वाला होता है । यह आमलक एक बहुवीज वृक्ष विशेष है । इसी प्रकार लकुच शब्द से लोकप्रसिद्ध (लीची) नाम के फल वाला वृक्ष नहीं लिया जाता है लकुच को बडहल कहते हैं अतः यहां बडहल नाम का वृक्ष लिया जाता है। इसी प्रकार "जे यावन्ने तहप्पगारा" जो और भी इन्हीं वृक्षों के जैसे वृक्ष होते है वे सब भी वहुबीज वृक्षो में गिने गये हैं "एएसि मूला वि असखेज्जजीविया जाव फला बहुवीयगा" इन बहुबीज वृक्षो के मूल मसंख्यात जीवों से अधिष्ठित होते है यावत् इनके फल बहुत बीज वाले होते है । यहां यावत्पद से कन्द से लेकर प्रवाल पर्यन्त-कन्ट, स्कन्धत्वक्, शाखा प्रवाल तक - के पद गृहीत हुए है । अतः ये सत्र असंत्यात जीव वाले होते हैं और पत्र एक जीव वाले होते हैं। ‘सेत्तं बहुवीयगा" इस प्रकार से ये वहुबीन वृक्ष कहे गये है। 'सेत्त रुक्खा,, दोनो प्रकार के वृक्षों का भेद બહબીજવાળા હોવાથી બહબીજક કહેવાય છે અહિયાં આમલક એ શબ્દથી લોક પ્રસિદ્ધ આમળાનું ઝાડ ગ્રહણ કરેલ નથી. કેમ કે તે એકારિક–એક બીજવાળા હોય છે આ આમલક તે એક બહુબીજવાળું વૃક્ષ વિશેષ છે એજ પ્રમાણે લકુચ શબ્દથી કપ્રસિદ્ધ લીચી' નામના ફલવાળા વૃક્ષને ગ્રહણ કરેલ નથી લકુષ્યને બડહલા કહે છે. તેથી અહિયાં 'य' २५-४थी १७ नामनु वृक्ष यड ४२ छे थे प्रमाणे "जे यावन्ने तहप्पगारा" RL 6५२ वणवस वृक्षा सिवायना मीत २ मा वृशाना २१ वृक्षा हाय छ त मा १ गरमी वृक्षामा गणता छ "एपसि मूलावि असंखेज्जीजविया जाव फला बहुवीयगा" मा परजीवाणा वृशान भूत असण्यात वाथी व्याप्त डाय छे यावत् તેના ફલે બહુ બીજવાળા હેલ્થ છે અહિયાં ચાવત્ પદથી કદથી લઈને પ્રવાલ પર્યંત २४५, २४५, १ (ख) मा (6) प्रवास (५५) सुधीना पहे। हY ४२या छे. तेथी ये मया सस च्यात् पाय छ भने पान ४ वाणा डाय छे “सेतं बहुवीयगा" 107 गा गई वा वृक्षनु ४थन युछे "से तं रुक्खा" मा રીતે એક બીજ, અને બહુબીજ બન્ને પ્રકારના વૃક્ષના ભેદ સાથે અહિયાં કથન
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy