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________________ २५० जीवाभिमसूत्रे पम्नत्ता' वनस्पतिकायिकजीवा द्विविधाः - द्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ता - कथिता इति । द्वैविध्यमेव दर्शयति'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा ' तद्यथा - 'सुहुमवणस्सइकाइया ये वायरवणस्स इकाइया य' सूक्ष्मवनस्पतिकायिकाश्च बादरवनस्पतिकायिकाश्च, सूक्ष्मत्वं सूक्ष्मनामकर्मोदयात् बादरत्वं बादरेंनामकर्मोदयात् न तु सूक्ष्मत्वमल्पत्व बादरत्वं च स्थूलत्वं बादरकपित्थयोरिवेति । 'से किं तं सुहुमवणस्सकाइया' अथ के ते सुक्ष्मवनस्पतिकायिकाः, इति प्रश्नः, उत्तरयति - 'मुहुमवणस्सइ काइया दुविधा पत्ता ' सूक्ष्मवनस्पतिकायिका द्विविधाः - द्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः - कथिताः, 'तं जहा ' तद्यथा - पज्जत्तगा य अपज्जतगा य पर्याप्तकाश्च अपर्याप्तकाञ्च 'तदेव' तथैव - अन्य - इसके उत्तर में प्रभुकहते है- "वणम्सइकाइया दुविहा पन्नत्ता" हे गौतम ! वनस्पतिकायिकजीव दो प्रकार के कहे गये है- "तं जहा " जैसे "मुहुमवणस्सइकाइया य, वायरवणस्सइकाइया य" सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और वादरवनस्पतिकायिक जिन वनस्पतिकायिक जीवों के सूक्ष्म नामकर्म का उदय होता है वे सूक्ष्मवनस्पतिकायिक है और जिनवनस्पतिकायिको के बादर नामकर्म का उदय होता है वे वादर वनस्पतिकायिक हैं । यह सूक्ष्मतो अलव और बादरता स्थूलता बदर और कपित्थ के जैसा सापेक्ष नहीं है | किन्तु सूक्ष्मत्व और बादरत्व नाम कर्म के अधीन है । 'से किं तं सुदुमवणस्स इकाइया " हे भदन्त । सूक्ष्मवनस्पतिकायिकजीवों के कितने भेद हैं ? उत्तर में प्रभु कहते है - "सुहुमवण सइकाइया दुविहा पन्नत्ता" सूक्ष्मवनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं । "तं जहा " जैसे - "पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य" पर्यातक और अपर्याप्तक "तव" इस सम्बन्ध मे शरीर आदि द्वारों का कथन सूक्ष्म पृथिवीकायिक के प्रकरण के जैसा ही जानना चाहिये ! सूक्ष्म पृथिवीका 1 उत्तरभा लगवान् भहावीर प्रभु छे--वणस्सइकाइया, 'दुविधा पण्णत्ता'-डे औतभ વનસ્પતિકાચિક જીવે એ પ્રકારના કહેવામાં આવેલા છે. તું નન્હા તે બે પ્રકારા આ પ્રમાણે सुभवा - "सुहुमवणस्सइया य, बायरवणस्सइकाइया य" सूक्ष्मवनस्पति अयि मने માદરવનસ્પતિકાયિક જે વનસ્પતિ કાયિક જીવાને સૂક્ષ્મ નામ કમ ના ઉદય હાય છે, તેઓ સૂક્ષ્મ વનસ્પતિકાયિક કહેવાય છે અને જે વનસ્પતિકાયિક જીવાને ખાદર નામ કર્મના ઉદય થાય છે, તેઓ ખાદર વનસ્પતિક ચિક કહેવાય છે શ્મા સૂક્ષ્મપણું, અપપણુંઅને બાદર જી-સ્થૂલપણુ એર અને કપિત્થ-કાઠાની જેમ અપેક્ષા વાળુ હાતુ નથી પરંતુ સૂક્ષ્મત્વ અને ખાદત્વ નામક ને આધીન છે "से किं तं सुमघणस्सइकाइया" हे भगवन् सूक्ष्म वनस्पतिायिए बना डेटला प्रारना । सा है ? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु छे - सुहुमवणस्मइकाइया दुविहा पण्णत्ता" शुक्ष्म वनस्पति प्रारना डेला हे "तं जहा" ते या प्रभाव छे"पज्जतगा य अपज्जत्तगा य" पर्यास मने अपर्यास" तद्देव" या सूक्ष्मवनस्पतिः की वना
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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