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________________ १३८ नीद्याभिगमसूत्रे इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम | 'दुगइया' द्विगतिकाः द्वयोः स्थानयो गतिर्विद्यते येषां ते द्वितिकाः, चादरपृथिवीकायिकत उद्वृत्य तिर्यड्मनुष्येष्वेव गमनात् 'ति आगइया' त्र्यागतिकाः त्रिभ्यः स्थानेभ्य स्तिर्यड्मनुष्यदेवेभ्य आगमनात् त्र्यागतिकाः बादरपृथिवीकायिका भवन्तीति ॥ 'परित्ता असंखेज्जा य समणाउसो' हे श्रमण ' हे आयुष्मन् परीत्य - प्रत्येकशरीरिणोऽसंख्येयाश्च–असंख्येयलोकाकाशप्रमाणत्वादिति । ' से तं वायरपुढवीकाइया' ते एते बादर पृथिवी - कायिकाः सक्षेपविस्तराभ्यां कथिताः । ' से त्तं पुढवीकाइया' ते एते पृथिवीकायिका : सूक्ष्मवादरपृथिवीकायिकाः प्रतिपादिता इति ॥ सू० १२॥ कथिताः पृथिवीकायिकाः अतः परम् अष्कायिकान् दर्शयितुमाह - 'से किं तं आउक्काइया' इत्यादि, मूलम् :- 'से किं तं आउकाइया, आउकाइया दुविहा पन्नत्ता' तंजा-सुम आउकाइया य वायर आउक्काइया य सुम आउक्काइया में प्रभु कहते है - 'गोमा ? दुगइया ति आगइया' हे गौतम ' ये बादरपृथिवी कायिकजीव मरकर तिर्यञ्चगति, और मनुष्यगति में जाते हैं - किन्तु नरक गति और देवगति में नहीं जाते है इसलिये ये द्विगति कहलाते हैं और तीन गतियो से मरकर जीव यहाँ - बादरपृथिवीकायिक रूप से उत्पन्न होते हैं-अर्थात् तिर्यग्गति से, मनुष्यगति से और देवगति से मरकर जीव यहां जन्म लेते हैं इसलिये ये त्र्यागतिक - तीन आगतिवाले कहलाते हैं । 'परित्ता असंखेज्जा य समणाउसो' हे श्रवण ' आयुष्मन् ! प्रत्येक शरीर असंख्यात लोकाकाश प्रमाण होने से असंख्यात है | 'सेत्तं वायर पुढवीकाइया' इस प्रकार सक्षेप और विस्तार से बादर पृथिवी कायिकों का वर्णन किया, 'सेत्तं पुढवीकाइया' वे ये पृथिवीकायिकजीव है अर्थात् यह सूक्ष्म और बादर पृथिवीकायिक का वर्णन समाप्त हुआ | सूत्र ॥१२॥ 2 2 या प्रश्नमा उत्तरमा अछे -- "गोयमा ! दु गइया ति आगइया" हे गीतभ આ ખાદર પૃથ્વી કાયિક જીવ મરીને તિર્યંચગતિ અને મનુષ્યગતિમાં જાય છે. પર ંતુ નર્કગતિ અને દેવગતિમાં જતા નથી તેથીજ તેએ દ્વિગતિ અટલે કે એ ગતિવાળા કહેવાય છે. અને ત્રણ ગતિચૈાથી મરીને જીવ અહિયાં ખાદરપૃથ્વીકાયિક પણાથી ઉત્પન્ન થાય છે. અર્થાત્ તિય ગતિ, મનુષ્યગતિ અને દેવગતિથી મરીને જીવ અહિંયાં જન્મ લે છે. તેથી 'प्रयागति' त्रयु प्रहारनी या गति-भाववानी गतिवाजा अडेवाय हे उजा य समणाउसो' हे श्रम म. युष्मन् अत्येष्ठ शरीर वाणा भवना सोप्राश प्रभाणु होवाथी असंख्यात ह्या छे " से तं वायरपुढवीकारया" मा रीते सक्षेय गाने विस्तारथी माहरपृथ्वीश्रयिोनु वर्षान युछे "से કાયિક જીવ છે અર્થાત્ આ સૂક્ષ્મ અને ખારપૃથ્વીકાયિકનુ "परित्ता असंखेअहेथे असण्यात 005 'ते मा पृथ्वी Hथ्यु. सू. ११ २
SR No.009335
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages690
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size45 MB
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