SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 831
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - ७१८ औपपातिकसने मूलम्----अलोगे पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पडिटिया। इह बोंदि चइत्ता णं, तत्थ गंतूण सिज्झइ ॥ सू०१०८॥ प्ठिता व्यवस्थिता । तथा--'कहिं बौदि चहत्ता ण व शरीर त्याचा सल 'कस्थ गतूण क्व गत्वा 'सिन्झई सिध्यन्ति । 'वोदी' इति शरीरार्थको देशीशन्द ! 'सिजाई' इत्यत्रार्पवाद बहुत्वे एक वम् ।। सू० १०७ ।। टीका-~~-'अलोगे इत्यादि । 'अलोगे' अलोके अलोकामाशास्तिकाये सिद्धा' सिद्रा 'पडिहया' प्रतिहता अतिरद्धाः, तथा 'लोयग्गे य' लोकामे पञ्चास्तिकायलक्षणलोकशिरोभागे च 'पडिद्विया' प्रतिष्टिता अपुनरावृत्तिरूपेण व्यवस्थिता , तथा 'इड' इह 'कर्हि पडिहया सिद्धा' इत्यादि । गौतम पूछते हे कि ह भदत ! ( कहि पडिडया सिद्धा) सिद्ध भगवान किस स्थान पर अटके है ।, (कहिं सिद्धा पडिट्ठिया) वे कहा प्रतिष्ठित है ।, (कहिं बौदि चहत्ता ण) इस शरीर को छोडकर (कत्य गतूण सिज्झइ) वे कहा जा कर सिद्ध होते है ? ।। सू १०७ ॥ 'अलोगे पडिहया' इत्यादि। उत्तर----हे गौतम । (अलोगे पडिहया सिद्धा लोयग्गे य पडिहिया) सिद्ध भगवान् लोक के अग्रभाग में रहते है, इसलिये वे अलोक में जाने से अटके हुए हैं। लोक के अग्रभाग में उनकी स्थिति है । (इह वोदि चात्ताणं) इम मनुष्यलोक में वे शरीर का 'कहिं पडिहया मिद्धा' 'त्यादि. गौतम पूछे है सन्त। (कहिं पडिहया सिद्धा) सिख सापान ध्या स्थाने मट छ १, (कहि सिद्धा पडिट्रिया) तसा ४प्रतिष्ठित छ १, ( कहिं चोदि चइता ण, कत्थ गतूण सिज्झइ) मा शरीरने छीन તેઓ કયા જઈને સિદ્ધ થાય છે? (૧ ૦ ૧૦૭) 'अलोगे पडिहया' या उत्तर- गौतम (अलोगे पटिहया सिद्धा) सिद्ध मान ! सभामा २ तेथी तो माथी 423 खाय छ (लोयग्गे म पडिटिया) asan Ranमा मनी स्थिति छ (इह बोर्टि चइता ण) सा मनुष्यमा तसा शरीरमा परित्याग २ (तत्य गतूण : ...
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy