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________________ ६७६ औपपातिकवारे - अपलिक्खीणा भवंति, तंजहा-(१) वेयणिज्ज (२) आउयं ३ णाम गोत्तं सव्ववहुए से वेयणिजे कम्मे भवइ, सव्वत्थोवे से आउए कम्मे भवइ। विसमं समं करेइ बंधणेहिं ठिईहि य, विसमसमकरणयाए बंधणेहिं ठिईहि य। एवं खलु केवली समोहणति, एवं खल्लु केवली समुग्घायं गच्छति ।। सू० ८०॥ कर्माशा 'अपलिखीणा' अपरिक्षीणा अवशिष्टा 'भवंति' भवन्ति सन्ति, 'त जहा' तद्यथा--'वेयगिज्ज' वेदनीयम्, 'आउय' आयु , 'णाम' नाम, 'गोतं' गोत्रम्, 'सबरहुए से वेयणिज्जे कम्मे भवइ' सर्वनहुल तद् वेदनीय कर्म भवति, 'सन्वत्थोवे से आउए कम्मे भवइ' सर्वस्तोक तद् आयु कर्म भाति, 'विसमं सम करेइ वधणेहि ठिईहिय' विषम सम करोति बन्धन -प्रदेशन्धानुभागधापाश्रित्येति भाव, स्थितिभिश्चस्थितिनन्धविशेषैश्च, ‘विसमसमकरणयाए बधणेहि ठिईहि य एवं खलु केवली समोहणंति' अव पढ़योजना--एव सल पिपमसमकग्णाय-विषमर्मगा ममीकरणार्थ बधनै स्थितिभिश्च केपलिन 'समोहणति' समुनन्ति-समुद्घात कुर्वन्ति एवं खलु केरली समुग्धाय गच्छति' एव खल केनलिन समुद्घात गच्छन्ति ।। सू ८०॥ है, (त जहा) वे ये है-( वेयणिज्ज आउय णाम गोत्त) वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र । (सन्चपहुए से वेयणिज्ने कम्मे भवद ) केरली में सबसे अधिक स्थितिवाला उस समय वेदनाय कर्म रहता है। (सम्पत्थोवे से आउए कम्मे भवइ) तथा सबसे स्तोक आयुकर्म रहता है । (विसम सम करेइ बधणेहिं ठिईहि य विसमसमकरणयाए बधणेहि ठिहि य ) इस विषमता को सम करने के लिये अर्थात् आयुफर्म की स्थिति के समान वेदनायादिक कर्मों की स्थिति करने के लिये केली भगनान् समुद्धात करते है। अन्य मी २ छ, ( त जहा) मा छे (वेयणिज्ज आउय णाम गोत) वहनीय , मायु, नाम मन गान (सव्यवहुए से वेयणिज्जे कम्मे भवइ) पिजीमा सपथी पधारे स्थितिमा समय वहनीय ४ २ छ (सव्व. त्योवे से आजा कम्मे भवइ) तथा सर्वथी स्तो मायुभ २९ छ (विसम सम करेइ यधणेहि ठिईहि य, सिमसमकरणयाए वधणेहिं ठिईहि य) २ વિષમતાને સમ કરવા માટે અર્થાત આયુકર્મની સ્થિતિ બરાબર વેદનીય
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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