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________________ पीयूपयर्षिणी-टोका सू ७९ केयलिसमुद्घातविषये भगवद्गीतमयो सपाय ६७५ उसो । सव्वलोयं पि य णं ते फुसित्ता णं चिति ।। सू० ७९ ।। मूलम्-~-कम्हा णं भंते । केवली समोहणंति ? कम्हाणं केवली समुग्घायं गच्छति ? गोयमा । केवलीण चत्तारि कम्मंसा यथाऽतिसूदमत्वाद् गन्यपुगलान्न जानायेर निर्मरापुहलानपीति दृष्टा तप्रदर्शनम् । 'सबलोय पियण' सर्वलोकमपि च मल ते निर्नगपुद्गग 'फुसित्ता ' स्पृट्ना पल्लू "चिट्ठति' निष्टन्ति ।। मू ७९ ॥ टीकापौनम पृच्छति-'म्हा या भंते ! दयादि । 'कन्दा ण भते । कस्मात्पछु भदन्त =हभदन्त ! कम्मान यल 'केवली' केरलिन 'समोहणति' समुद्रन्ति कस्मै प्रयोजनाय केरलिन समुद्घात कुर्वन्तो यर्थ , उक्तमर्थ-पुन सुमनोधार्थमाट-'कम्हाण केली' कस्मात् सल केवलिन , 'समुपाय' समुदधातमः-आमप्रदेशप्रसारकता गच्छन्ति प्राप्नुवत्ति, भगनानुत्तरमाह-'गोगमा " गौतम । 'केवलीण चत्तारि कम्मसा' केरलिना चत्वार प्मन् अमण ! जिस प्रकार उमस्थ गधादिक गुणा द्वारा अयत सूक्ष्म रूप से परिणत गप पुदलों को ययावस्थित रूपसे नहीं जान सकता है उसी प्रकार वह अत्यत सम्मलप से परिणत होने के कारण उन निर्जगपुद्गला को भी गधानिक गुणद्वारा न जान सकता है, न देग सकता है। इस दृष्टान्त से यह बात स्फुट हो जाती है ।। ७९ ॥ ___ 'कम्हा पा भते !' इत्यादि । __ गौतम ने पुन प्रश्न किया-(भते!) ह भदन्त । (कम्हाण) किस कारण से (केवली) केवली भगवान् (समोहणति) ममुद्घात करते है। अर्थात् केरलिया को समुद्घात किस प्रयोजन के लिये करना पड़ता है। उत्तर-(गोयमा) हे गोतम । (केरलीण चत्तारि कम्मसा अपरिवरसीणा भाति) केवलियों के चार कर्म अवशिष्ट रहते અત્યત મરૂપમાં પરિણામ પામેલા ગધપુદગલેને યથાવસ્થિતરૂપથી જાણી શકતા નથી, તેવી જ રીતે અત્યત ભૂકંમરૂપમાં પરિણામ પામેલા હેવાને કારણે તે નિરાયુગલેને પણ બધ આદિ ગુણ દ્વારા જાણી શકતા નથી, તેમ જોઈ શકતા નથી આ દૃષ્ટાતથી એ વાત સ્પષ્ટ થઈ જાય છે ( ૭૯) 'कम्हा ण भते । केयली समोहणति' इत्यादि गौतम जी पाछी प्रश्न - (भते!) महन्त (कम्हाण) ४॥ थी (केवली) पक्षी मवान् (ममोहणति) भभुवात ४२ छ, अर्थातBहासाने समुधात उया प्रयासनने भाटे ८२व ५ छ ? उत्तर-(गोयमा) हे गौतम (केवलीण चत्तारि कम्मसा अपलिम्सीणा भाति ) जीमान र
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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