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________________ पोषिणी-टीका सूर्यासमितादि विषये मगधद गौतमयोः सयाद ६६३ कालमासे कालं किच्चा, उक्कोसेणं सव्वहसिद्धे महाविमाणे देवताए उत्तारो भवति, तर्हि तेसि गई, तेत्तीस सागरोत्रमाई टिई, आराहगा, सेसं तं चैव ॥ सू० ६८ ॥ मनुत्रनवभाविनी वा अचानुर्ये व काचा 'पुणे' पुन, अत्र पुना यता, 'एंगे' केतु 'भरवारी मक्कार सनमसेविन, 'भयंतारी' इयवारा पुत्रकामेमे' पूर्वपूर्व काठमा ari faar mein का कृत्वा - 'टकको मन्त्रमिद्धे महात्रिमाणे' सर्वार्थसिद्धे महाविमाने 'देवताए' देववेन 'उच्चारी भवेति' उपपठारी मवन्ति =उपयन्ते, 'हि तसि गई वेची सागरीमाई तिन तेषा गति, afraternatio स्थिति | 'बाराहा aarकाका 'तं॥ ६८॥ हैं कि जिसे aerat म नहीं होता है तो ऐसे वे अनार भगवान् (एगचा) कमवावतारी होते है। वे (भरवारी) स्यम की आगमना २ ही (पुव्यम्मात्रमेण ) पूर्वक्रमे के अवशिष्ट होने के काग (वामा कार्ड किया) का सर में काल कर (ग) से (मसिंह महाविमाणे daare casure raft) सवसि नामके माविमान में देवपाय से उपन हो व्य है । (तहिं नेमि गर्ट, दिई तेचीमं मागबमार ) वहीं पर गति और स्थिति होती है। इनकी स्थिति वहाँ पर तेतीस सागर प्रभाग है । ( बारादगा मेमंत्र देव) ये नियम से परलोक के आवक होते हैं। अवशिष्ट पूर्ववत्र समझना चाहिये ॥ मु ६८ ॥ 1 લગવાન હોય કે ફે મને તેજ બવમા ફેવળજ્ઞાન તેમજ કંવદર્શનને લાલ મળતા નથી તે એવા તે અનગાર ભગવાન (ન્ના) એટલવાવતારી होय तेथे (नारी) नयभनी भागवनी ४२ / ( पुन्यकम्मानसेसेन) पूर्वदर्भना भाही हेवाना (कामासेका किल्ला) -- अरे (कोण) are वटे (सह महानिमा देवचार - વાસ્તુ અધિ) સર્વા સિદ્ધ નામના મહાવિમાનમા દેવપયાથી ઉત્પન્ન થય ત્યા તેમની ગતિ અને સ્થિતિ હોય કે તેમની ત્યા સ્થિતિ તેત્રીય સામ प्रभाष छे (आरागा समं वचैव तेथे नियमधी पदीला आग सोय छे, भाटी अनु सग प्रभास से (८)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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