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________________ __ओपातिकको सुसीला सुव्वया सुपडियाणंदा साह सव्वाओ पाणाडवायाओ पडिविरया जाव सव्वाओ परिगहाओ पडिविरया, 'सव्वाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोहाओ जाव मिच्छादंसणसल्लाओ ऽनुसन्धेय । सर्वपा व्यारयाऽव द्विपष्टितमे सूत्रे गता । नवर-धर्मेणच वृत्तिं कल्पयन्त -निरवचभिक्षया ग्यमयागारूपा वृत्ति निहत इत्ययों योग्य । शेषपदानामपि व्यारया तस्मिन्नेव सूने वृत्ताऽस्माभि । 'मुसीला मुख्यया मुशीला मुनता 'मुपटियाणदा' सुप्रत्यानन्दा -मुटु प्रत्यानन्दश्चित्ताहादो येपा ते तथा, आनापिचयधर्मध्यानानन्दयुक्ता 'साहू ' साधर , 'सव्वाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जाव सव्वाओ परिम्गहाओ पडिविरया' सर्वस्मात् प्राणातिपाताप्रतिविरता यावसर्वस्मात् परिग्रहात्प्रतिविरता, 'सन्चाओ कोहाओ माणाओ लोभाओ जार मिच्छादसणसल्लाओ पडिविरया' सर्वस्मात् क्रोधान्मानान्मायाया लोभाद् यावन्मिध्यादर्शनशम्यात्प्रतिविरता., 'सव्याओ आरव्यारया इसी उत्तरार्ध के वासठ (६२) सूत्र में की जा चुकी है । (मुसीला) ये सुशाल तथा (मुव्वया) निदोप रीति से व्रतों की आराधना करने, वाले होते हैं । (सुपडियाणदा) आज्ञाविचयनामक धर्मध्यान के घ्याने से इनका चित्त सदा अहादयुक्त बना रहता है। ये सब (सन्याओ पाणाइवायाओ पडिविरया) सर्व प्रकार के प्राणातिपात से विरक्त रहते हैं, (जाव सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया) यावत् समस्त परिग्रह से विरक्त रहा करते है, (सव्वाओ कोहाओ) समस्त प्रकार के क्रोध से, (माणाओ) मान से, (मायाओ) माया से, (लोहाओ) लोभ से, (जार मिच्छादसणसल्लाओ) यावत् मिथ्यादर्शन शन्य से, (पडिविरया) विरक्त रहा करते है, (सन्चाओ आरभमसमारभाओ पडिविरया) समस्त मा मासमना उत्तरार्थना मास (१२)भा सूत्रमा उपाभा मावी छ (सुसीला) सुशील नया (सुव्वया) निहा५ शतिथी प्रतानी माराधना ४२वावा' डाय छ (सुपडियाणदा) माज्ञापियय नामना धर्मध्यान ध्यावाथी तभना वित्त सहा मानही मनेसा २ छ ते मया (सव्याओ पाणाइवायाओ पडिविरया) सर्व प्रारना प्रातिपातथी पि२४ २७ छ (जाव सव्याओ परिगहाओ पडिविरया) तभा समस्त परिअडथी पि२४ २४ा ४२ छ (सव्वाओ कोहाओ) समस्त मारना अधथी, (माणाओ) भानथी, (मायाओ) भायाथी, (लोहाओ) बालथी,' (जाव मिच्छादसणसल्लाओ) तेभ०४ मिथ्याशन शयथी (पडिचिरया) वि२t रहा। १२ 9. (सव्वाओ आरभ-समारभाओ पडिविरया) समस्त मालसभा
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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