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________________ पीयूषपपिणी-टीवार ४ सम्पनियामक टिपये भगदगौतमयो संपाद ६०१ दिवसे डिवडियं काहिति. विडयदिवसे चंदसूरदंसणियं काहिति, छठे दिवसे जागरियं काहिति, एक्कारसमे दिवसे वीइते णिव्वत्ते असुइ-आय-कम्मकरणे संपत्ते वारसाहे दिवसे अम्मापियरो इमं एयारूवं गोणं गुणणिप्फण्णं णामधेनं काहिति'काहिति' करिष्यत 'वियदिवसे' द्वितायदिवसे 'चंदमूरदसणिय' चन्द्रसूर्यदर्शनिकानामक पुत्रनन्मोत्सवविशेष करिप्यत , 'नटे दिवसे' पळे दिवसे 'जागरिय' जाग रिका गनिजागरिका-पुतजन्मोसवरूपा फरिप्यत 'एकारसमे दिवसे' एकादशे दिवसे 'बीडरते' व्यतिक्रान्ते व्यतीते, 'णिब्बते' निवृत्ते= व्यताते ‘असुइनायकम्मकरणे' अशुचिजातकर्मकरणे-अशुचीनाम्-अगोचवता जातकर्मणो जातकर्ममस्कारस्य यत करणविधान तम्मिन् , निवृत्ते मताति पूर्वेगान्चय 'सपत्ते वारसाहे दिवसे' सम्प्राप्ते द्वादशाहे दिवसे दादशाहरूपे दिन समागते ठन्यर्थ , अम्मापियरो इमं एयाख्व गोणं गुणणिप्फपण नामवेज्ज काहिति' अम्बापितरो इद-वक्ष्यमागम् तद्रूप वक्ष्यमाणस्वरूप गौण पिता (पढमे दिवमे) प्रथम दिवस में (ठिऽवडिय) अपनी स्थिति के अनुसार पुत्र-जन्म के उत्सर को (काहिति) मनावेंगे। (विश्यदिवमे चटपरदसणिय काहिति) द्वितीय दिवसमें पुत्रजन्म के उसव के अवसर पर मनाये जाने वाले 'चदमूर्यदर्शनिका' नाम के उत्सव को करेंगे। (उद्धे दिचमे जागरिय काहिति) उठवे दिन जागरण करेंगे (एकारसमे दिवसे वीडक्कते णिन्चत्ते असुटजायसम्मकरणे सपत्ते वारसाहे दिवसे) ग्यारहवें दिवस जननाशौच समाम होने पर फिर बारहवें दिवस के लगने पर ( अम्मापियरो) इसके मातापिता (इम एयाख्व गोण गुणणिप्फण्णा णामवेज साहिति) दमका गुणमयधयुक्त एव सार्थक यिता (पढमे दिवसे) परदा हिपये (ठिइवडिय) पातानी स्थिति अनुसार पुत्रान्मनो (काहिति) मनायथे, (विइयनिवमे चदसूरदसणिय काहिति) બીજે દિવસે પુત્ર જન્મના ઉત્સવ અવસરે મનાવવામાં આવતે “ચ દ્રસૂર્યशनि।' थे नाम सप २थे, (उद्वे दिवसे जागरिय काहिति) ७४ पिसे MARY ४ (कारममे दिवसे पीइन्ते णिवत्ते असुइजायकम्मकरणे सपसे बारसाहे दिवसे) अभीयारमे पिसे ममशीय (सूत४) समास २६ गया पछी मारमा ५ यता (अम्मापियरो) तेना भातापिता (इम एयारूव गोण गुणणिप्फण्ण णामवेज काहिति) तना गुमने अनुरक्षाने
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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