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________________ - - - - - ५१२ औपपातिक माया-लोहा मिउ-मदव-संपण्णां अल्लीणा विणीया अम्मापिउ-सुस्सूसगा अम्मापिईणं अणडकमणिजवयणा अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा अप्पेणं आरंभेणं अप्पेणं समारंभण थमहकारजयशीला इत्यर्थ , 'अल्लीणा' आलीना गुरुमानिय वर्तनगोला , विणीया' विनीता विनयवन्त , 'अम्मा-पिउ-मुम्मूसगा' अवा-पितृ-शुश्रूपका =मातापित्री सेवका , 'अम्मापिर्दण अणदकमणिज्जायणा' अम्बापितोरनतिक्रमणीयवचना =मातापित्रीनीतिवचनपरायणा , 'अप्पिच्छा' अपेच्छा =अन्पामिलापरन्त , 'अप्पारंभा' अन्पारम्भा • अप = स्वप , आरम्भ =पृथिव्यायुपमर्दनरूपो येपा नेऽपारम्भा, 'अप्पपरिग्गहा' अन्य पारग्रहा -अन्प परिमहो=धनधान्यादिरूपो येपा ते तथा, एतदेव वाक्यान्तरेणाऽऽह-'अप्पेण आरभेण अप्पेण समारंभेग अपनारम्भेग अल्पेन समारम्भेग-दहाऽरम्भ प्रागिनामुपघात , (मिउ-मद्दव-सपण्णा) मृदुमार्दव से जिनकी आत्मा अत्यत वासित होती है, अहकार का सर्वथा जिनमें अभाव रहा करता है, (अल्लीणा) गुरु की आज्ञानुसार जो अपना प्रकृति को सुचारु बनाये रहा करते है, (विणीया) जो प्रकृति से ही अत्यत विनात होते है, (अम्मा-पिउ-सुस्म्सगा) मातापिता के जो सेवा करते हैं, (अम्मा-पिईण अगइक्मणिजवयणा) मातापिता के वचनों के अनुसार जो चलते है, (अप्पिच्छा) जिनकी इच्छाएँ-आवश्यकताएँ बहुत थोडी होती है, (अप्पारंभा) आरभ जिनका अल्प होता है, (अप्पपरिग्गहा) धनधान्यादिरूप परिग्रह जिनका अल्प होता है, (अप्पेण आरभेण अप्पेण समारभेण अप्पेण आरंभसमारंभेण वित्ति कप्पेमाणा) एव जो अल्प आरभ से, अल्प समारम्भ से और अन्य आरम-समारभ से आजीविका चलाया करत तभी ale से यार उपाय नम २।। ४२ छ (मिउ-मद्दव-सपण्णा) भृक्षમાર્દવથી જેમને આત્મા અત્યત વાસિત (બકુલ) હોય છે, અહકારને मनामा सपथममाप २॥ ४२ छ (अल्लीणा) गुरुनी माश!-मनुसार २ चातानी प्रकृतिन सुहर मनाच्या ४२ छ, (विणीया) २ अतिथी । सत्यत विनीत खाय छ, (अम्मा-पिउ-सुस्सूसगा) भाता-पितानी २ सेवा ४२ छ, (अम्मापिईण अणइक्कमणिजवयणा) भातापिताना वयना मनुसार २ याब छ (ते), (अप्पिच्छा) नी छाम-माश्यातायाम या डाय छ. (अप्पारभा) मारना म५ हाय छ, (अप्पेण आरभेण अपेण समार भण अप्पेण आरभसमारभेण वित्ति कप्पेमाणा) तम २ ८५ मार लयी,
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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