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________________ AuA पीयूषषिणो-टोका स १० प्रकृतिभद्रकादीनामुपातयिपये गौतमान ५२१ मूलम्-से जे इमे गामागर जाव संनिवेसेसु मणुया भवति, तंजहा- पगइभदगा पगइउवसंता पगइ-पतणु-कोह-माण टीका-~~से जे इमे' इत्यादि । 'से जे इमे' अथ य इमे वक्ष्यमाणा 'गामागर जाव सनिवेसेमु मणुया भवंति' प्रामाफर यार-निवेशेषु मनुजा भवन्ति-प्रामे आकरे नगरे निगमे यारत् सन्निवेशे मनुष्या भवन्ति, तान् वर्णयति-'त जहा' तथा 'पगढमदगा' प्रकृतिमद्रका -प्रया स्वभावेन भद्रका परोपकारपरायणा , 'पगडउनसता' प्रकृत्युपशान्ता मोधोदयाऽमावादुपशान्तिमुपगता, 'पगइ-पतणु-कोह-माण-माया लोहा' प्रकृति-प्रतनु-क्रोध-मान-माया लोभासयपि कपायोदये प्रकृया प्रतनुक्रोपाठिभावा , 'मिउ-महव-सपण्णा' मृदु-मार्दव-सम्पना-मृदु यन्मार्दव तत् सम्पन्ना आमा , अयस्थिति को अकामनिर्जरा के बल से भोगते हैं वे जीव मरकर व्यन्तर पर्याय से उत्पन्न होते हैं । वहा पर उनकी स्थिति १२ हजार वर्ष की होती है, पति ऋद्धि त्पादि समस्त देवीचित गुणों से ये मपन्न रहते है। वे परलोक के आराधक नहीं होते है ।। सू ९॥ _ 'से जे इमे गामागर जाव' इत्यादि। (से जे इमे) जो जीव (गामागर जाव संनिवेसेसु) पूर्वोक्त प्राम, आकर से लेकर सनिवेश आदि स्थानों में (मणुया भवति) मनुष्य होते है और उनमें जो (पगइमदगा पगइउपसंता पगड-पतणु-कोह-माण-माया-लोहा) प्रकृति से भद्रक होते हैं, क्रोधादिक कपायों के उदय के अभाव से जिनक परिणाम शातियुक्त बने रहते है, स्वभाव से ही जिनकी क्रोध, मान, माया एच लोभ ये चार कपायें पतली रहा करती है, વિષમ સ્થિતિને અકામનિર્જરાના બલથી ભેગવે છે તે જીવ મરી જઈને વ્યતર–પર્યાયથી ઉત્પન્ન થાય છે ત્યાં તેમની સ્થિતિ ૧૨ બાર હજાર વર્ષની હોય છે તૃતિ, ઋદ્ધિ આદિ સમસ્ત દેવેચિત ગુણેથી તેઓ સંપન્ન રહે છે તેઓ પરલેકના આરાધક હેતા નથી (સ ૯) "से जे इमे गामागर जाव" त्यात (से जे इमे)२७ (गामागर-जाव-सनिवेसेस) पूर्व उस शाम, माथी सन सन्निवेश माहि स्थानमा (मणुया भवति) मनुष्य याय छ भने सभा २ (पगइमहगा पगइउवसता पगइ-पतणु-कोह-माण-माया-लोहा) પ્રકૃતિથી ભદ્રક હોય છે, ક્રોધ આદિક કષાયોના ઉદયના અભાવથી જેના ફલરૂપે શાતિયુત રહ્યા કરે છે, સ્વભાવથી જ જેના ફોધ, માન, માયા
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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