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________________ ४९४ সৗথবালিকা अथ उत्तरार्दम्-~ मूलम्-तेणं कालेण तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेहे अंतेवासी इंदभूई णाम अणगारे गोयमगोत्ते णं टीका-'तेणं फालेण' यादि । ( तेणं काठेण तेणं समपण समणस्स भगाओ महावीरस्स) तस्मिन् काठ तस्मिन् समये भ्रमणस्य भगरतो महावीरस्य (जे? अतेवासी इदभूई णाम अणगारे) ज्येष्ठोऽ तेपासीट मतिनामा अनगार , ज्येष्प्रयमस्य मयमपर्यायेण सर्वश्रेष्टत्वात् , अन्तेवासी शिष्य , इन्द्रगतिरत नामक , अनगार =साधु , स कीदृश ? इत्या-'गोयमगोत्ने ' गौतमगोर-गौतम गोतमारय गोत्र यस्य स तथा 'ण' इति वाक्यालकारे, 'सत्तुस्सेहे' समोसेघ -सप्तहरत उसध-उच्छ्यो यस्य स तथा, 'सम-चउरस-सठाण-सठिए ' सम-चतुरम-मस्थान--सस्थित -सम च तच्चतुरन चेति उत्तराध का अनुवाद प्रारंभ'तेण कालेण ' इत्यादि। (तेण कालेण तेण समएण) उस काल एव उस समय में (समणस्म भगवओ महावीरस्स) श्रमण भगवान् के महावीर के (जेटे अतेवासी) 'नडे शिष्य (गोयमगोते ण) गौतमगोत्री (सम-चउरस-सठाण-सठिए) समचतुरस्रमस्थानमपन (सत्तु (१) जिसमें अग एव उपाग की रचना सम-प्रमाणोपेत (जिसका जितना प्रमाण होना चाहिये उस माफिक) होती है, कमती बढ़ती नहीं होती, उसका नाम 'समचतुरस्रसस्थान है। इसमें एक सौ आठ अगुल के उच्छ्राय वाले अग और उपाग होते है। आकार बडा ही सौम्य होता है। ઉત્તરાધના અનુવાદને પાર – 'तेण कालेण' त्या (तेण कालेण तेण समएण) तेल तभन त समयमा (समणस्स भगपओ महावीरस्स) श्रभY सपान महावीरना (जेटे अतेवासी) मा शिष्य (गोयमगोत्ते ण) गौतमगात्री (समचउरस-सठाण-सठिए) समन्यतुरख(૧) જેમાં અગ તેમજ ઉપાગની રચના સમ–પ્રમાણે પેત (જેવું જેટલું પ્રમાણ હોવું જોઈએ તે પ્રમાણે) હોય, વધુ ઘટુ ન હોય તેનું નામ સમચતુરસ-રસ્થાનછે આમા એક આઠ આગળ (સુ) ના ઉચ્છાયવાળા અગ તથા ઉપાગ હોય છે આકાર બહુજ સૌમ્ય હોય છે
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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