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________________ पीयूषयषिणी-टीका स १ गौतमस्थामिषर्णनम् सत्तुस्सेहे सम-चउरंस--संठाण-संठिए बहर-रिसह-णारायसंघयणे कणग-पुलग-णिघस-पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे समचतुरसम्-मानोन्मानप्रमाणानामन्यूनानधिक वात् अङ्गोपाङ्गाना चाविकलवात् ऊर्च तिर्यक् च तुन्यत्वात सम, चतुरन चाविकलावयव वात् , सम च तचतुरन चेति समचतुरस्र--स्वाहुलाष्टगतोच्छायाङ्गोपाङ्गयुक्त, युक्तिनिर्मितलेप्यकवदया, मस्थानम् आकारविशेष , तेन मस्थित न्युक्त , 'बर-रिसह-पाराय-सघयणे। वन-भ-नाराच-महनन-वनंकीलिका, ऋषभ पट्ट , नाराच -मर्कटबन्ध उभयपार्थयोरस्थियधविशेष , वर्षभनाराचा महनने अम्मा बविशेपे यस्य स वर्षभनागचमहनन , कणग-पुलग-गिधस-पम्हगोरे' कनक-पुलक-निरुप-पागौर --कनकस्य सुवर्णस्य पुलको लव --प्रफुल्लवलकणरूप , तस्य निकप कपपट्टे कृष्टो रेखारूपो लक्षणया लक्ष्यते, पुलकस्य मशुद्धतया निको कृष्टा गाऽताप चामचिक्ययुक्ता भवति,अतएव तेनोपमानेनोपमित पागौर -पयगर्भ =फिनल्क, तद्वदगौर =कमनीयकाति , 'उग्गतवे' उप्रतपा , 'दित्ततवे' दीमतपादीत प्रदीप्तो स्सेहे) मातहाथ की अवगाहनायुक्त (बहर-रिसह-शाराय-सघयणे) 'वन-पमनाराचमहननधारी (कणग-पुलग-णियस-पम्हगोरे) विशुद्ध सुवर्ण के खण्ड की शाण पर घसा हुई रेग्या के समान चमकीली कान्ति वाले तथा कमल के केसर के समान गौरवर्ण (हदभूई णाम अणगारे) ऐसे गौतम नाम से प्रसिद्ध इद्भभूति नाम के अनगार गणधर थे। (उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे पोरतवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतरस्सी घोरवभचेरवासी उच्छृहसरीरे सखित्तविउलतेयलेस्से) इनकी तपस्या बडी उग्र थी। (१) इस महनन में वड़ की सी कीले, वन के से हाड एव वन का सा पट्टबन्ध होता है। मस्थान-मपन्न (सत्तुस्सेहे) सात लायनी साइनायुत (वइर-रिसहपाराय-सघयणे) 40-'म नाराय-सहन पारी (पग-पुलग-णिघसपम्हगोरे) विशुद्ध सुपाई न उनी शाषण पर घसेती २ावी यमीली तिवापा तथा भान सरना का गौरपा (इदभूई णाम अणगारे) એવા ગૌતમનામથી પ્રસિદ્ધ ઇદ્રભૂતિ નામના અનગર ગણધર હતા (उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे घोरतवे उगले घोरे पोरगुणे घोरतवस्सी घोग्यभचेवामी उच्छूढमरीरे सखित्त-विउल-तेयलेरसे) तमन्नी तपस्या मर्ड હતી કમરૂપી વનને બાળવાવાળા હોવાથી તેમનું તપ અગ્નિના જેવુ બર:(૧) આ મહિનામાં વજના જેવા ખીલા, વા જેવા હાડ તેમજ તે જેવા પટ્ટીબધ હોય છે -- --- - --- - - - --
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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