SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०६ জীবথামিম ट्ठिया।तयाणंतरं चणं वहवे दंडिणों मुंडिणोसिहंडिणो जडियो पिच्छिणो हासकराडमरुयकरा चाडुकरा वादकरा कंदप्पकरा दवकरा कोकुइया किडकरा यवायंता यगायंताय हसंता यणचंताय भासंविशेषस्तस्या धारका इत्यर्थ , 'कुतुबग्गाहा' कुनुपग्राहिण -तबाटीना चर्ममय पात्र कुतुपस्त स्य धारका , 'हडप्पयग्गाहा' हडफयाटिग -ताम्बलाविभाजन हटफन्तस्य धारका इत्यर्थ , 'पुरो अडाणुपुवीए सपट्ठिया' पुरतो यांना मास्थिता ! 'तयाणतरं च णं तदनन्तर च खलु 'वह' नवो 'दडिणो' दण्डिन 'मुडिगो' मुण्डिन 'सिहडिगो' शिवण्डिन' शिसाविशेषधारिण', 'जडिणो' जटिन =जटायन्त , 'पिच्छिणो'-पिठिन =मयूरादिपिच्छवन्त 'हासकरा' हास्यका ‘डमरुयकरा' टमरुकारा ='इगडुगी'-तिप्रमिद्धवाघवादिन , 'चाडुकरा' चाटुकारिंग =प्रियवचनवादिन , वादकरा' वादकारिण , 'कटप्पकरा' कन्दर्पफारिण कामकथाकारिण, 'दवारा' द्रवकरा परिहासकारिण 'कोकुइया' कौतुकिका =कुतूहलकारिण , 'कीडकरी' क्रीडा करा , 'वायता य' वादयन्तश्च-मृदंगादिक वग्गाहा) कुतुप अर्थात् चमडे के तेलपात्र को धारण करने वाले, (हडप्पयग्गाहा) तथा हटप्फ-ताम्बूल पात्र को धारण करने वाले अनुक्रम से आगे २ चलने लगे । (तयागतर च ण) इसके बाद (वहवे) बहुत से (दडिणो) दडी, (मुडियो) मुण्डी, (सिहडिणो) शिखाधारी, (जडिणो) जटाधारी, (पिच्छिणो) मयूर आदि पिच्छ के धारी (हासकरा) हँसाने वाले (डमरुयारा) डुगडुगी बजाने वाले, (चाइकरा) प्रिय वचन बोलने वाले, (वादकरा) वादविवाद करन वाले, (कदप्पकरा) कामकथा करने वाले, (दवकरा) हसा मजाक करने वाले, (कोकुइया) कुतुहल करने वाले, (किडकराय) खेल-तमाशा करने वाले, (वायता य) मृदगाटिक वाजे बजाने वाले (गायता य) गाना गाने वाले, (हसता य) विना कारण (पीमान) धार ७२वावाण, (हड्प्पयग्गाहा) तथा ४५-(भूलपात्र)ने पार ४२वावा मनुभथी मा ५ यार्सपासाया (तयाणतर च ण) त्यार पछी (बहवे) गनेही (दडिणो) 30 (मुटियो) मुडी (सिहडिणो) शिपाधारी (जडिणो) ४ाधा (पिणिो ) मयूर माहि पीछाना धार ४२ना। (हासकरा) मापना। (विष) (डमरयकरा) ऊगडी गाउना। (चाडुकरा) प्रियवयन बासना, (वादकरा) पापियार ४२नारा, (कदप्पकरा) भया नास, सकरा) सीमा ४२नारा, (कोक्कुइया) 3२नारा, (किड्करा) पर तभासा ४२ना२, (वायता य) भृश६ (ढास) पान पाउनास, । य)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy