SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 482
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पोषयपिणो-टीका सू ४२ भगवदर्शनार्थ यूणिकस्य गमनम् उत्तं बहु-किकर-कम्मकर-पुरिस-पायत्त-परिक्खित्तं पुरओअहाणुपुब्बीए संपटियं । तयाणंतरं चणं वहवे लडिग्गाहा कुंतग्गाहा चावग्गाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा पोत्थयग्गाहा फलगग्गादा पीढग्गाहा वीणग्गाहा कूवग्गाहा हडप्पयग्गाहा पुरओ अहाणुपुबीए संपपीठम्-श्रेष्ठ-मणि-रन-स्वचित-पादस्थापनपाठ-सहितम् , 'सपाउया-जोय-समाउत्त' स्वपादुकायोग-समायुक्तम्-स्वपादुकयोयों योग =स्वन्ध , तेन समायुक्तम् , 'बहु-किंकर-चम्मकर-पुरिस-पायत्त-परिक्खित्त' बहु-फिसर-कर्मकर-पुरुष-पादात-परिक्षिप्तम्-बहुभि =अनेकै कि = स्वामिन पृष्ट्वा कार्यकरै ,ऊर्मक मृत्यै ,पुरुषै =साधारणजनै ,पादातेन पदातिसमूहेन परिक्षिप्तम्-उत्थापितम्, पुरतो यथानुपा सम्प्रस्थितम् । 'तयाणतर च ण' तदनन्तरञ्च ग्वलु 'वहवे लडिग्गाहा' बहवो यष्टिप्राहिण , 'कुतग्गाहा' कुन्तग्राहिण =मल्लधारका 'चायगाहा' चापग्राहिण -धनुर्धारिण , 'चामरग्गाहा' चामरग्राहिण , 'पासग्गाहा' पागणाहिण -उद्धतगजाश्वादिबन्धनसाधन पागस्तस्य धारका । ' पोत्ययग्गाहा' पुस्तकग्राहिण , 'फलगग्गाहा' फलकग्राहिग --फलक ='ढाल' इतिरयातस्तस्य धारका , 'पीढग्गाहा' पीठप्राहिण -पीठानि आसनविशेषास्तेपा धारका इत्यर्थ । 'वीणग्गाहा' चीणाग्राहिण -वीणा-बायरनों के बने हुए पादपीठ को लेकर आगे २ चलने लगे । इसके बाद (वहवे लडिग्गाहा) अनेक लाठीमारी चलने लगे । (कुतग्गाहा) अनेक भल्लधारी (चावग्गाहा) धनुर्धारी (चामरग्गाहा) चामरधारी (पासग्गाहा) उद्धत हाथी और घोडों को जिमके द्वारा वश मे किया जाये ऐसे पाश को धारण करने वाले, (पोस्थयग्गाहा) पुस्तकधारी, (फलगग्गाहा) ढाल को धारण करने वाले (पीढग्गाहा) आसनविशेष के धारी (वीणग्गाहा) वीणाधारी (कुतुઆગળ આગળ ચાલ્યા, તથા ઘણા નેકર-ચાકર અને સૈનિક લોક શ્રેષ્ઠ સિહાગનને તથા પાદુકા સહિત ઉત્તમ મણિરત્નોની બનેલી પાપીઠને લઈને मा मानण याच्या त्या२ पछी (बहवे लट्रिग्गाहा) मने सीधा याला asu (कंतग्गाहा) भने सासारी, (चावग्गाहा) धनुर्धारी, (चामरगाहा) याभरधारी, (पासग्गाहा) G &ाथी मने घोसने ना द्वारा पशमा स य पाशने धारण उपापाणा, (पोत्ययग्गाहा) पुतधारी, (फलगग्गाहा) ढासने धाएर ४२वापा, (पीढग्गाहा) मामन विशेषना धारण ७२पापाणा, (वीणग्गाहा) पीधारी, (कुतुवग्गाहा) तु५ अर्थात यामानात पात्रने
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy