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________________ ३७८ - - ओपतिपत्रे जत्ताभिमुहाई जुत्ताई जाणाई उवहवेहि, उवदृवित्ता एयर्मणत्तियं पञ्चप्पिणाहि ॥ सू० ४३ ॥ __ मूलम्-तए णं से जाणसालिए बलवाउयस्स एयमई सालाए' बाहायामुपस्थानमालायाम् , 'पाडियकपाडियकाई' प्रयेक प्रयेकम्-प्रत्येकाऽर्थम् , 'जत्ताभिमुहाट' यात्राभिमुसानि-भगवदर्शनार्थगमनानुकतानि 'जुत्ताई' युक्तानि 'जाणाड' यानानि 'उवट्ठवेहि' उपस्थापय-सजीकृत्य समानय, 'उबढवित्ता' उपस्थाप्य 'एयमाणत्तिय पचप्पिणाहि' एतामाजमिका प्रत्यर्पय-मटीयामाजा पश्चात् समर्पय-सर्वे सम्पादितम् इति नूहि ॥ मू० ४३ ॥ टीका-'तए ण से' इयादि । ___ तत सल स 'जाणसालिए बलबाउयस्स एयमह' यानगालिको बलयात स्यैतमर्थम् यानसजीकरणाऽऽनयनरूप निर्देश श्रुत्वा, आजाया विनयेन वचन 'पडिसुणेड' के बैठने योग्य अलग २ रूप मे (जत्ताभिमुहाड) याना के लायक-भगवान के दर्शन करने के लिये जिसमे बैठकर जाया जाता है ऐसे (जुत्ताद) एव अच्छे २ बेलों से युक्त (जाणाह) रथादिक वाहनों को (उवट्ठवेहि) उपस्थित करो, (उवद्ववित्ता) उपस्थित करके (एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणेहि) इस मेरी आजा को यथावत् पालन करने की खबर पीछे मुझे बहुत जल्दी भेनो ॥ सू० ४३ ॥ - 'तए ण से जाणसालिए' इत्यादि । (तए ण) सेनापति के आदेश देने के बाद (से जाणसालिए) उस यानशाला के अधिकारी ने (वलवाउयस्स) सेनापति के (एयम) यान को सजित करके लानेकी पाडियाकाइ) ४ ४ राशीन सपा योज्य सस सस ३५मा (जत्ताभिमुहाइ) यात्राने दाय सापाननाशन ४२१॥ माटमा मेसीन वाय मेवा, (जुत्ताइ) तेभर सारा सारा महोथी युद्धत (जाणाइ) २थ आणि पासनाने (उचढवेहि) २ २ (उववित्ता) ४२ रीने (एयमाणत्तिय प्रचप्पिणेहि) मा भारी माज्ञानु पासन ४२पानी ५२ पछी भने म જદી એકલો (સૂ૦ ૪૩) "तगण से जाणसालिए" त्याह (सर) नातिना माहेश या पछी (से जाणसारिए) ते यानासाना अधिकारी (वल्याउयरस) भेनापतिनी (ण्यमट्ठ) यानने तैयार ४शने साप
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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