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________________ २८० औषपातिकमत्रे अदृज्झाणे चउबिहे पण्णते; तं जहा-अमणुण्णसंपओगसंपउत्ते तस्स विप्पओगसइसमण्णागए यावि भवड १, मणुण्ण एषु चतुर्विधेषु ध्यानेषु प्रथममार्तगान चतुर्वि माह-अट्टज्माण चउबिहे पणते' आर्तध्यान चतुर्विध प्रजमम् , 'त जहा' तयया-१-'अमणुण्यसपभोगमपउत्ते तस्म पिप्पओगसइसमण्णागए यावि भाद' अमनोनमम्प्रयोगमम्प्रयुक्तस्तस्य विप्रयोगस्मतिसमन्वागतश्चापि भवति-अमनोज =अनिष्टो य अादि , तस्य सम्प्रयोगायोगस्तेन सम्प्रयुक्तो य स तथाविध सन् तस्य अमनोजगन्दादे विप्रयोगस्मृति =वियोगचिन्ता, तया समन्वागत = अनुगतश्चापि भवति, एतद् आर्तध्यानम् , ध्यानध्यानातोरभेटोपचाराद ध्यानगनपि ध्यानमुच्यते, एवमग्रेऽपि यो यम् । २-मणुण्यसपनोगमपउत्ते तम्स अपिप्पओगसइस इन चार प्रकार के ध्यानों में प्रथम जो आतध्यान है, वह चार प्रकार का है, इसी बात को बताने के लिये प्रकार कहते ह-(अज्माणे चउबिहे पण्णत्ते) आर्तध्यान ४ प्रकार का कहा गया है । (त जहा) वह इस प्रकार से-(अमणुण्णसप ओगसपउत्ते तस्स विप्पओगसइसमण्णागए यावि भाद) अमनोज-अनिष्ट गन्दादि के सनध होने पर उसके विप्रयोग-दूर करने के लिये जो वारवार विचार किया जाता है वह अनिष्टसयोगज आर्सध्यान है । यहा ध्याता को जो ध्यान कहा है वह ध्यान और पानवान् में अभेद के उपचार से जानना चाहिये । इसी तरह से आगे के ध्यानों में भी अभेद का उपचार जानना। (मणुग्णसपोगसपउत्ते तस्स अविष्पभोगसइसमण्णागए यावि - આ ચારેય પ્રકારના ધ્યાને માથી પ્રથમ જે આર્તધ્યાન છે તે ચાર प्रा२नु छ, पात वा माटे सूत्रा२ (अट्रज्झाणे चउविहे पण्णत्त) भारत ध्यान यार प्रहारना डेटा छ (त जहा) ते मारे छ-(अमणुण्णसप ओगसपउत्ते तस्स विप्पओगसइसमण्णागए यावि भवइ) आमनामनिष्ट શબ્દાદિકને સ બ ધ થતા તેને વિપ્રગ-દૂર કરવા માટે જે વારંવાર વિચાર કરવામાં આવે છે તે અનિમયોગજન્ય આર્તધ્યાન છે અહીં ધ્યાન ફના જે ધ્યાન કહેવામાં આવ્યું છે તે ધ્યાન અને ધ્યાનવાન અભેદ એકતાના ઉપચારથી થયે છે તેમ જાણવું જોઈએ, એ જ રીતે આગળના माप मलेहना पयार oneी देवो (मगुणसंपओगसपउत्ते तरस अविप्पओगसइसमण्णागए यानि भवइ) भनाश- A s विपयोमा
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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