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________________ यूषयषिणी-टीका सू० ३० यिनयभेदधर्णनम् ૨૭ से कि तं विणए ' विणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा- गच्छानि सारितोऽम्मीत्यगुभो भाव स्थपतगेऽपि न विद्यते स एववियगुणसम्पन्न पाराधिक प्रायश्चित्त कर्तुमर्हति । यस्वेतदगुणरहितस्तस्य पागञ्चिकापत्ति प्राप्तस्य मूल्मेव धेत्त भवति । . आशातनापाराश्चिको जघन्येन पण्मामान् , उन्कर्पतश्च द्वादश मामान् भवति, एतापन्त . .--च्छानियूढ (निकाशित ) स्तिष्ठति । प्रतिसेवनापागञ्चिको जघन्येन मरसरमुत्कर्पतो द्वादश वर्षाणि नियूढ आस्ते । विस्तरस्तु-अन्यत्र द्रष्टय । ‘से त पायच्छित्ते' तदेतप्रायश्चित्तम् । 'से कि त विणए ' अथ कोऽसौ विनय ? विनय किंस्वरूप इति प्रश्न । उत्तरमाह-'विणए' पिनय -नियति--अपनयति अष्टविधर्माणीति पिनय =अभ्युथानवन्दनगया है' यह अशुभ भाव अणुमात्र भी न हो, इस प्रकार के गुणों से युक्त ही साधु पाराचिक प्रायश्चित्त का अधिकारी है । जो साधु इन गुणों से रहित है, उससे पाराचिकाई प्रायश्चित्त योग्य अपराध हो गया है, उमको मूलाई प्रायश्चित्त ही दिया जाता है। ___आशातनापाराश्चिक साधु जघन्य से छ मास तक और उत्कर्प से बारह मासतक गच्छ से बहिष्कृत रहता है। प्रतिसेवनापाराञ्चिक साधु जघन्य से एक वर्प और उन्कर्प से बारह वर्ष गच्छ से बहिष्कृत रहता है। इसका विस्तृत वर्णन अन्यत्र देखना चाहिये । (से त पायच्छित्ते) ये दस प्रकार के प्रायश्चित्त है ।। सू० ३०॥ (से कि त विणए ) विनय का क्या स्वरूप है। (विणए सत्तविहे पण्णते) विनय सात प्रकार का है । जो अष्टविध कर्मों को दूर करता है, वह विनय है । માથી કાઢેલા છતા પણ જેના મનમાં “હું ગચ્છથી બહિષ્કાર પામેલ છુ ” એ અશુભ ભાવ આસુમાત્ર પણ ન હય, એ પ્રકારના ગુણવાળે જ સાચું પારાચિક પ્રાયશ્ચિત્ત અધિકારી છે જે સાધુ એ ગુણોથી રહિત છે તેનાથી પારાચિકાણું પ્રાયશ્ચિત્ત એગ્ય અપરાધ થઈ ગયો હોય તે તેને મૂલાહ પ્રાયશ્ચિત્ત જ અપાય છે આશાતનાપારાચિક સાધુ જઘન્યથી છ માસ સુધી અને ઉત્કર્ષથી બાર માસ સુધી ગચ્છથી બહિષ્કૃત રહે છે પ્રતિસેવનાપારાચિક સાધુ જઘન્યથી એક વર્ષ અને ઉત્કર્ષથી બાર વર્ષ સુધી ગ૭થી मति २२ तेनु विस्तृत वन मीरथी ने नये (सेतपायच्छित्ते) २॥ ६श प्रजाना प्रायश्चित्त छ (सू० उ०) (से किं त विणए) विनय तपनु २१३५ छ? उत्तर-(विणए सत्तविहे पण्णत्ते) ते मात
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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