SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पीयूषयषिणी-टोका सू २८ भगवदन्तेय सिथर्णनम १९७ मूलम्-नत्थि णं तेसि णं भगवंताणं कत्थइ पडिबंधे भवड । से य पडिवंधे चउबिहे पण्णत्ते; तंजहा-दबओ खेत्तओ कालओ भावओ। दव्वओ णं-सचित्ताचित्तमीसिएसु टीका- नत्यि' इत्यादि। नास्ति अय पक्ष , यत् खलु 'तेसि ण भगताण' तेपा सलु भगताम-श्रीमहावास्यामिन शिष्याणाम् 'कथइ' मापि-कम्मिन्नपि पिपये 'पडियो भाइ' प्रतिम- -आसक्ति भरतीति, श्री महावीरस्वामिनोऽन्तेपामिना सयमप्रनिन-गीभूत कोऽपि हेतु कुत्राऽपि न भवतीति भाव । ' से य पडियो चउबिहे पण्णने ' स च प्रतिवन्धश्चतुर्विध प्रजम 'त जहा' तथया-भेदप्रकारचे यम्-न्यत क्षेत्रत कालतो भावतश्च । तेपु 'दबओ ' द्रव्यत खलु 'सचित्ताचित्त-मीसिएमु दव्येसु' सचित्ताऽचित्त-मिश्रितेपु द्रव्येषु । तर-सचित्त-शिष्यादिकम् , अचित्त वस्त्रादिकम्, मिश्रितम्-शिष्यसहितकबादिकम्, एतेपु द्रव्येषु, 'खेत्तओ' क्षेत्रत - 'नत्यि णं' इत्यादि। (तेसि ण भगताण) भगवान महावीर के समीप में रहनेवाले उन स्थविर भगन्तों का (कत्या) किसी भी चिपय में (पडिपधे) प्रतिबध (नत्थि) नहीं या। अर्थात् भगान् वीर प्रभु के ये समस्त मुनिजन सयम के विघातक किसी भी विषय + आसक्ति नहीं रसते थे। (से य पडिपे चउविहे पण्णत्ते ) वह प्रतिवध चार प्रकार का कहा गया है, (तजहा) वह इस प्रकार है-(दधओ खेत्तओ कालो भावओ) द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से एन भान से। (दमओ ण सचित्ता-चित्त-मीसिएसु दवेसु) द्रव्य से प्रतिनध ३ प्रकार का है-(१) सचित्त (२) अचित्त (३) सचित्ताचित्त । __'नत्थि ण' त्यादि (तेसि ण भगताण) मावान महावीरना सभीपमा २वा स्थपि२ मापताने (कथइ) विषयमा (पडिबधे) प्रति५५ (नस्थि) ન હોતે, અર્થાત્ –ભગવાન વિરપ્રભુના તે સમસ્ત મુનિજને સયમના વિઘાતક डाय सेवा विषयमा मासहित मत नहाता (से य पडिबधे चउबिहे पण्णत्ते) ते प्रतियार प्रहारना ४सा छ (तजहा) ते मारे छ (दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ) द्रव्यथी, क्षेत्रथी, ४थी तभ०४ साथी (दव्यओ णं सचित्ता-चित्त-मीसिएसु दव्वेसु) द्रव्यथा प्रतिमाय ! ४२। छ-(१) मथित्त, (२) ययित्त, (3) सथित्तायित्त, शिष्य माविड सथित छे
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy