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________________ १९० ओपपातिकको चणा अकाहा अमाणा अमाया अलेोभा संता पसंता उवसंता परिणिध्वुयाअणासवाअगंथाछिपणग्गंथा छिपणसायानिरुवलेवा, वभयारी' गुप्तनमनारिण -गुप्त नवनिर्माचर्यगुप्तिमी रक्षित प्रहा-मैथुननिरमणं चरन्ति तच्छोला , 'अममा' अगमा -मम वरहिता , 'अकिंचणा' अभिमाना-नास्ति किंचन येपा ते अकिञ्चना -धमोंपकरणातिरिक्तमस्तुरहिता । 'अकीहा' अकोरा कोरगर्मिता, , 'अमाणा' अमाना = मानरहिता , 'माया' अमाया = मायानर्जिता, अलोमा' अलोभा -लोभरहिता, 'सता' शान्ता -पहिया शातियुक्ता, 'पसता' प्रशान्ता - अन्तर्वृत्या गान्तियुक्ता , अन एप 'उपसता' अशा-ता =गीनीमूना 'परिणिभुया' परिनिर्वृता = कर्मकृतनिकाररहित वात् स्वस्थीभूता , अतण्य 'अणामया' अनास्रवा = आस्रवरहिता , 'आगया' अत्र या =नि या, 'जिग्गगया' छिनमन्था ग्रन्थाति वनाति आत्मान कर्मणेति ग्रन्थ , स द्विविध- द्रव्यभावमेदात् , द्रव्य-हिरण्यादि । वाटिका-सहित ब्रह्मचर्य के धारक थे, इसलिये गुमनह्मचारी थे। (अममा) ममत्व से रहित थे। (अकिंचणा) धर्मोपकरण से अतिरिक्त और इनके पास कुछ नहीं था। (अकोहा) क्रोधरहित थे। (अमाणा) मानरहित थे। (अमाया) मायारहित थे । (अलोभा) लोभरहित थे। (सता) नाहरसे शान्तियुक्त थे, (पसता) भाभ्यन्तर से शान्तियुक्त थे, अत एव (उवसता) गीतीमृत थे। (परिणिन्युया) कर्मकृत विकार से रहित होने के कारण स्वस्थ थे, अत एव (अणासा) आस्रव से रहित थे। (अग्गथा) निम्रन्थ थे। (छिण्णगथा) जो आत्मा को कर्मों से जकडे (बाँधे) उसका नाम ग्रन्थ है। यह दो प्रकार का होता है। १ दगाथ, दूसरा भायग्रन्थ । हिरण्यादि द्रव्यग्रन्थ है। ता, तेथी तभने गुप्तेद्रिय उडे छे (गुत्तवभयारी) नाटिst 413) सडित क्षयर्यनु पासानं. २नार हुता (अममा) भभत्पथी २डित ता (अकिंचणा) धर्ना५४२६४थी यतिरिडत तेमनी पाये नहातु (अकोहा) ओपडित हुता (अमाणा) मानडित ता (अमाया) भायाडित ता (अलोभा) मरहित ह (सता) महारथी शान्तियुत उता (पसंता) साम्यन्तरथी शान्तियुत ता, मत मेव (उपसता) शान्त-तीभूत सन्ह२. मने महारथी शीतल ता (परिणिन्नुया) उमेत विधारथी डापाने रहो २१२थ हता, म्मत मेव (अणासवा) पाखथी २डित ता (अग्गथा) नियता (चिण्णगथा) २ यात्मान थी १४ी राजे (आधे) तेनु નામ ગ્રન્થ છે એ બે પ્રકારના થાય છે ૧ દ્રવ્યગ્રન્થ અને ૨ ભાવગ્રન્થ ,
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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