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________________ १६३ पीयूववर्षिणी-टोका सु २४ भगवदन्तेयामिवर्णनम हराआगासाइवाई,अप्पेगडयाकणगावलितवोकम्म पडिवण्णा,एवं एगावलि खुड्डागसीहनिकोलियं तवोकम्म पडिवण्णा,अप्पेगडया साइबाई ' आकाशानिपातिन -आकाग-व्योम अतिपतन्ति-अतिकामन्ति-आकाशगामिविद्याप्रभावात्-ये ते तथा । 'अप्पेगडया मणगावलितबोकम्म पडिवग्या' अन्येकके कनकावलीतप कर्म प्रतिपन्ना , 'एव ' एवम्-जनेन प्रकारेण 'एगावलिं' एकावली प्रतिपन्ना , एकावरीनामकतप कर्मण आनिग्न्यत्रोक्ता-दति न मा विवियते । 'खुडागमीहनिकीलिय वोसम्म पटिवण्णा' सुद्धक-सिंह-निकीडितम्-जुलक-लघु, सिंहनिष्क्रीदिन-सिंहगमन तदिन यत्तपन्नन् मिहनी क्रोटिनम् , एतत्तपो वक्ष्यमाणमहानिहनिष्क्रीडिताऽपेक्षया मुलक, सिंहगमनच्च अतिकान्तदेशाऽवलोकमतो भनि, एवमनिकान्ततप सेवनेन अपूर्वतपमोऽनुष्ठान यम्मिन् तत् मिहनिष्क्रीये। कितनेक ऐसे मुनिजन ये जो आकाटागामी थे। उनके पास आकारागामिनी विद्या थी। उमके ही प्रमाव से ये आकागमें उडते थे। (अप्पेगट्या कणगावलितवाफम्म पडिवण्णा एव एगावलि खुड्डागसोहनिकीलिय तवोफम्म पडिवन्ना) कित्तनेक ऐसे मुनिजन थे नो कनरावली तप को तपते थे, और कितनेक मुनिनन एकावली तप तपते थे। कितनेक ऐसे ये जो लमुसिंहनिष्क्रीडित तप की आराधना करते थे। इस तप के साथ "शुल्लक" पद का प्रयोग हुआ है मो महामिहनिष्क्रीडित तपकी अपेक्षा समझना चाहिये । जिस प्रकार सिंह अपने द्वारा अतिकान्त देवा को अवलोकन करते हुए आगे २ गमन करता है। उसी प्रकार हम तप म भी अतिक्रान्त तप के सेपन की अपेक्षा रखते हुए अपूर्व २ तपों का अनुष्ठान किया जाता है । એવા હતા જે આકાશગામી હતા તેમની પાસે આકાશગામિની विधा हती ना? असाथी त माडामा ता ता (अप्पेगडया कणगालितवोकम्मं पटिरण्णा, एव एगारलिं खुहागसीहनिस्क्रीलिय तमोसम्म पडि पन्ना) सामे सपा मुनिना ता ? उनासी त५ तपता तो, અને કેટલાક મુનિજન એકાવલી તપ તપતા હતા કેટલાક એવા હતા જે લઘુસિહ- નિષ્ક્રીડિન તપની આરાધના કરતા હતા આ તપની સાથે મુલ્લક” પદનો પ્રયોગ થયે છે, તે મહાનિ હનિષ્ક્રીડિત તપની અપેક્ષાએ સમજે જોઈએ જે પ્રકારે સિંહ પિતાથી અતિકાત દેશને જેતે થે આગળ આગળ ગમન કરે છે તે જ પ્રકારે આ તપમા પણ અતિક્રાત તપના સેવનની અપેક્ષા રાખતા અપૂર્વ અપૂર્વ તપેનું અનુષ્ઠાન કુવામા આવે છે
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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