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________________ जैनागमारिधि - जैनधर्मदिवाकर - उपाध्याय - पण्डित – मुनि श्रीआत्मारामजी महाराज (पनान)का आचाराद्गमूत्र की" आचारचिन्तामणि टीका पर सम्मति-पत्र । मैने पूज्य आचार्यवर्य श्रीघासीलालजी (महाराज)की बनाई हुई श्रीमद् आचाराहस्त्र के प्रथम अध्ययन की आचारचिन्तामणि टीका सम्पूर्ण उपयोगपूर्वक सुनी। यह टीका-न्याय सिद्धान्त से युक्त व्याकरण के नियम से निबद्ध है। तथा इसमे प्रसंग २ पर क्रम से अन्य सिद्धान्त का संग्रह भी उचित रूप से मालूम होता है। टीकाकारने अन्य सभी विपय सम्यक् प्रकार से स्पष्ट किये है, तथा मौढ विषयों का विशेपरूप से सस्कृत भाषा में स्पष्टतापूर्वक प्रतिपादन अधिक मनोरंजक है, एतदर्थ आचार्य महोदय धन्यवाद के पात्र है। ." में आशा करता हूँ कि-जिज्ञासु महोदय इसका भलीभाति पठन द्वारा जैनागम-सिद्धान्तरूप अमृत पी-पी कर मन को हर्पित करेंगे, और इसके मनन से दक्ष जन चार अनुयोगों का स्वरूपज्ञान पायेंगे। तथा आचार्यवर्य इसी प्रकार दसरे भी जैनागमों के विशद विवेचन द्वारा श्वेताम्बर स्थानकवासी समाज पर महान उपकार कर यशस्वी बनेंगे। वि स २००२ । जैनमुनि-उपाध्याय आत्माराम मृगगर सुदि १ लुधियाना (पजाब) ।। 1. T i - * - शुभमस्तु । वीकानेरपाला समाजभूपण शास्त्रज्ञ भेरुदानजी शेठिआका अभिमाय . "आप जो शास्त्रका कार्य कर रहे है' यह बडा उपकारका कार्य है । इससे जैनर्जनता को काफी लाभ पहुंचेगा. ', ' (ता २८-३-५६ का पत्र में से)
SR No.009334
Book TitleAuppatiksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages868
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size26 MB
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