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________________ मुनिकुमुदचन्द्रिका टीका, चम्पानगरीवर्णनम् - चनमित्यर्थः, (१७) बुल्लगकरः- बुल्लगो-जातिभोजनं, तस्य करः, (१८) औत्तिककरः- औत्तिकः = औत्पात्तिकीवुद्धिपरिकल्पितविज्ञानकलाव्यापारस्तस्य करः । 'वण्णओ' वर्णकः, वर्ण्यते प्रकाश्यतेऽर्थों येन स वर्णः, वर्ण एव वर्णकः चम्पानगरीवर्णनमित्यर्थः, सर्वोऽत्र वाच्यः, स चौपपातिकमत्रादवसेयः, तत्र खलु तस्यां चम्पायां नगर्याम् 'उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए' उत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे-उत्तरपूर्वयोरन्तरालदिग्विभागे-ईशानकोणे इत्यर्थः, 'एत्थ णं' अत्र खलु 'पुण्णभदे णामं चेइए' पूर्णभद्रं नाम चैत्यं यक्षायतनम् आसीत् । तत्र 'वणसंडे' वनपण्डः अनेकजातीयप्रधानवृक्षसमूहरूपः, एकजातीयप्रधान (१७) वुल्लगकर-जाति-भाइयों को भोजन देना उसको 'वुल्लग' कहते हैं, उसका कर। ___ (१८) औत्तिककर-औत्पातिकी बुद्धि से परिकल्पित विज्ञान- कला के व्यापार पर लगनेवाला कर । . ये अठारह प्रकार के कर चम्पानगरी में नहीं लगते थे। । जिसके द्वारा अर्थ प्रकट होता है उसे 'वर्णक' कहते हैं। - वर्णक का यही अभिप्राय है-चम्पानगरी का वर्णन । वह सविस्तर औपपातिकसूत्र से जानना चाहिये। उस चम्पानगरी के ईशान कोण में पूर्णभद्र नामका यक्षायतन था। वहाँ अनेक जाति के वृक्षों का अथवा एक जाति के वृक्षों का सुन्दर (१७) बुल्लगकर ति-मिश्श्यिाने मान हे तर 'बुल्लग' - छे, तेन ४२, (१८) औत्तिककर मीत्पाति:-पात मुद्धिथा प२ि४ति विज्ञान माना વ્યાપાર ઉપર લેવાતો કર. આ અઢાર પ્રકારના કર ચમ્પા નગરીમાં લાગતા નહતા. नाथी म ४८ थाय छ त 'वर्णक' छ. वर्णकना मी मनिप्राय छચમ્પા નગરીનું વર્ણન ...: तसविस्तर औपपातिकमूत्रथा नये. २मा या नगीना शान કેણુમાં પૂર્ણભદ્ર નામનું યક્ષાયતન હતું. ત્યાં અનેક જાતિનાં વૃક્ષનું અથવા એક જાતિના વૃક્ષોનું સુંદર વનણંડ હતું, તેનું પણ વિશેષ વર્ણન ગૌપાતિસૂત્રથી જાણવું. -
SR No.009332
Book TitleAntkruddashanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages392
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size24 MB
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