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________________ ७ जैनागमवारिधि - जैनधर्मदिवाकर - उपाध्याय - पण्डित - मुनि श्री आत्मारामजी महाराज ( पंजाब ) का आचाराङ्गसूत्र की आचारचिन्तामणि टीका पर सम्मति - पत्र | मैंने पूज्य आचार्यवर्य श्रीघासीलालजी (महाराज) की बनाई हुई श्रीमद् आचाराङ्गसूत्र के प्रथम अध्ययन की आचारचिन्तामणि टीका सम्पूर्ण उपयोगपूर्वक सुनी। यह टीका - न्याय सिद्धान्त से युक्त, व्याकरण के नियम से निबद्ध है। तथा इसमें प्रसंग २ पर क्रम से अन्य सिद्धान्त का संग्रह भी उचित रूप से मालूम होता है । टीकाकारने अन्य सभी विषय सम्यक् प्रकार से स्पष्ट किये हैं, तथा प्रौढ विषयों का विशेषरूप से संस्कृत भाषा में स्पष्टतापूर्वक प्रतिपादन अधिक मनोरंजक है, एतदर्थ आचार्य महोदय धन्यवाद पात्र हैं । मैं आशा करता हूँ कि जिज्ञासु महोदय इसका भलीभाँति पठन द्वारा जैनागम-सिद्धान्तरूप अमृत पी-पी कर मन को हर्षित करेंगे, और इसके मनन से दक्ष जन चार अनुयोगों का स्वरूपज्ञान पावेंगे । तथा अचार्यवर्य इसी प्रकार दूसरे भी जैनागमों के विशद विवेचन द्वारा श्वेताम्बर - स्थानकवासी समाज पर महान उपकार कर यशस्वी बनेंगे । वि.सं. २००२ मृगसर सुदि १ जैन मुनि - उपाध्याय आत्माराम लुधियाना (पंजाब) शुभमस्तु ॥ antarवाला समाजभूषण शास्त्रज्ञ भेरुदानजी शेठिआनो अभिप्राय --:: आप जो शास्त्रका कार्य कर रहे हैं यह बडा, उपकारका कार्य है । इससे जैनजनता को काफी लाभ पहुँचेगा. ( ता. २८-३-५६ ना पत्रमाथी )
SR No.009332
Book TitleAntkruddashanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages392
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size24 MB
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