SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४८ । : र उपासकदशागसूत्रे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाएं अडित्तए।" अहासुहं देवाणुप्पिया। मा पडिवध करेह ॥ ७७ ॥ तए गंभगवं गोयमे समणेण भगवया महावीरेणं अभYण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओइपलासाओ चेडयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अतुरियमचलमसंभते जुगतरपरिलोयणाए दिट्रीए पुग्ओ इरिय सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाइ कुलाइ घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाएअडइ॥७॥ तए णं से भगव गोयमे वाणियगामे नयरे, जहा पण्णत्तीए तहा जाव भिक्जायरियाए अडमाणे अहापज्जत भत्तपाणं सम्म पडि ग्गाहेइ, पडिग्गाहित्ता वाणियगामाओ पडिणिग्गच्छइ, पडिणिग्ग च्छित्ता कोल्लायस्स सन्निवेसस्स अदूरसामतेण वीईवयमाणे बहु जणसद्द निसामेइ । बहुजणो अन्नमन्नस्स एवसाइक्खइ३-“एव खल्लु देवाणुप्पिया । समणस्स भगवओ महावीरस्स अतेवासी पष्ठक्षपण पागण के वाणिजग्रामे नगरे उच्च नीच म यमानि कुलानि गृहसमुदानस्य भिक्षाचर्याय अटितुम्"। (म०) "यथासुख देवानुप्रिय ! मा प्रतिबन्ध कुरु ॥७७॥ तत खलु भगवान गौतम श्रमणेन भगवता महावी रेणाभ्यनुज्ञात मन श्रमणस्य भगवता महावीरस्यान्तिकाद् दतिपलाशाचैत्यात्मतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्यात्व रितमचपलममम्भ्रान्ता युगान्तरपरिलोग्नया दृष्टया पुरत ईर्ष्या शोषयन येनव वाणिजग्राम नगर तेनेयोपागन्छति, उपागत्य वाणिजग्रामे नगरे उच्च निच माय मानि कुलानि गृहममुदानस्य भिक्षाचर्यायै अटति ॥७८॥ तत खलु स भगवान् गौतमो वाणिजग्रामे नगरे यथाज्ञप्त्या तथा यावद्विक्षाचर्याय अटन यथापर्याप्त भक्तपान सम्या प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्य वाणिजग्रामात्मतिनिर्गच्छति, प्रतिनिगत्य कोल्लाकस्थ सग्निवेशस्याऽदरसामन्ते यतिव्रजन बहुजनशब्द निशाम्यति । बहु जनोऽन्योन्यस्मै एवमाख्याति४-"एव ग्वलु देवानुमिय श्रिमणस्य भगवतो महा
SR No.009331
Book TitleUpasakdashangasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy