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________________ ६४ छाताका 1 सपुत्रो धन्यः सार्थवाहः 'गति' इति पूर्वक धरणीतले निपतति । ततः खलु स धन्यः सार्थवाहः आत्मपष्ट ' आगत्ये ' आमस्त = उच्छ्वास न सचेष्टः सन ' हमाणे फनन् = यक्ता पर्न 'कंमाणे ' क्रन्दन् उच्चस्तरेण पुनः 'माणे विनविलापन ' महया महया संदेश ' महतामहता शदेन = मत्यु चैन' २ प २ सुमन कुहू इति शब्दगुच्चापत्यर्थ रुदितः सरगुरिकाका उपर्यन्त 'वाहमोक्ख' वाप्प मोक्षम् = मथुमोचन करोति । ततः स म धन्यः सार्थवादः पञ्चभिः पुत्रैः सह आत्मपप्ठ. चिलाव तस्यामग्रामिकायाम् अटव्या सर्वत समन्तात् 'परिषा - चपक वृक्ष के समान 11 धस हम शब्द पूर्वक भूमिपर गिर पड़ा। बाद मे पांच अपने पुत्रो के साथ आत्मपष्ट बना हुआ वह धन्य सार्थवाह आश्वस्त, उच्छ्वास छोड़ता हुआ सचेष्ट हो गया सो अव्यक्त शब्द करता हुआ खूप जोर २ से रोने लगा, विलाप करने लगा। एव बहुत ऊँचे २ शब्दों से कुह कुष्ट करता हुआ-हाय सासे लेता हुआ बहुत से देर तक रोता रहा - अश्रुमोचन पूर्वक आक्रंदन करता रहा- (तरण घणे सत्यवाहे पहिं पुत्तरं सद्धि अप्पट्टे चिलाय तीसे अग्गामियाए अडवीए सन्चओ समता परिधाडे माणे तहाए छुहाए य परिभूए समाणे तीसे अग्गामियाए अटवीग सञ्चओ समता उदगस्स भग्गणगवेसण करेइ) इसके बाद पाचो पुत्रों के साथ आत्मपष्ठ बना हुआ वह धन्यसा र्थवाह उस अग्रामवाली अटवी में चिलातचोर के पीछे पीछे बार २ दौड़ता हुआ तृपा और क्षुधा से पीडित होकर उस अग्रामवाली अटवी જેમ “ ધમ ” શબ્દની સાથે જમીન ઉપર પડી ગયા ત્યારપછી પાચે પુત્ર તેમજ છઠ્ઠો તે ધન્યસાવાડુ આશ્વસ્ત–ઉચ્છ્વાસ છેડતા–નિસાસા નાખતા સચેષ્ટ થઈ ગયા અને અન્યકત શબ્દ કરતા ધ્રૂસકે ધ્રૂસકે ખૂબ જોરથી રડ લાગ્યા, વિલાપ કરવા લાગ્યા અને હુ મેટા સાદે ‘કુ કુદ્’ કરતા હા હાય કરીને શ્વાસેા લેને ઘણીવાર સુધી રડને રહ્યો તેમજ માસૂ પાડત આક્રંદ કરતા રહ્યો " (तरण से धणे सत्यवादे पचर्हि पुत्तेहिं सद्धिं अपछडे चिलाय ती अग्गा मियाए अडबीए सव्प्रओ समता परिवाडेमाणे तव्हाए हाए य परिभूए समाणे तसे अग्रगामिया अडीए सन्त्रओ समता उद्गस्स मग्गगगवेसण करेइ ) ત્યારબાદ પાચે પુત્રાની સાથે છઠ્ઠો તે ધન્યમાલાહ તે ગામ વગરની નિર્જન અટવીમા ચિલાત ચારની પાછળ પાછળ વારવાર > ને તૃષા
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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