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________________ अमगारधामृतवपिणी टी० १० १८ सुसुमादारिकाचरितवर्णनम् ६९३ खिन्नः, 'नो सचाएइ 'नो शक्नोति चिलात चोरसेनापति ' साहत्थि ' स्वह स्तेन ग्रहीतुम् । तदा स खलु 'तो' तत चिलातग्रहणव्यापारात् , 'पडिनियतह मति निवर्तते. प्रतिनित्य, यत्रैव सा सुसुमा दारिमा चिलातेन जीविताद् ‘वरोनिया' व्यपरोपिता-पृथक्कृता-मारिता सती पतिता आसीत् तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य सुसुमा दारिका चिलातेन जीविताद् व्यपरोपिता पश्यति, दृष्ट्वा ' परसुनियत्तेप' परशुनिकृत्त इव-परशुच्छिन्नो यया चम्पकवरपादपस्तद्वत् क्षुधा से प्रान्त हो गयो-खिन्न बन गया, तान्त हो गया-शरीर से मुरझा गया-परितान्त हो गया-इदम उत्साह रहित बन गया-सो वह उसे अपने हाथ से पकडने के लिये शक्तिशाली नही हो सको-(सेण तओ पडिनियत्तह, पडिनियत्तित्ता जेणेव लो सुसमा दारिया चिलाएण जीवियाओ ववरोविया-तेणेव उवागच्छद) अतः-वह वहा से लौट आयो-और लौटकर वहाँ गया जहा वह अपनी पुत्री सुसमा चिलातचोर के द्वारा-जीवन से रहित की गई पडी थी। (उधागच्छित्ता सुसमा दारिय चिलाएण जीवियाओ ववरोविय पासइ, पासित्तो परसुनियत्तेव चपगवरपायवे धसत्ति धरणियलसि निवडइ-तएणं से धणे सत्थवाहे पचर्हि पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछडे आसत्थे कूयमाणे कदमाणे विलवमाणे मया २ सद्देण कुह २ सुपरुन्ने सुचिर कालवाहमोक्ख करेइ) वहा जाकर उसने सुममा दारिका को चिलातचोर के द्वारा जीवन से रहित की गई देखा। देखते ही वह पुत्रों सहित परशु से काटे गये उत्तम ગયે-શરીર તેનુ ચિમડાઈ ગયુ પરિતાત થઈ ગયે-સાવ નિરૂત્સાહી બની ગયે એવી હાલતમાં તે પિતાના હાથથી તેને પકડી પાડવામાં સમર્થ થઈ शय नडि (से ण तओ पडिनियत्तइ, पडिनियत्तिता जेणेष सा सुसमा दारिया चिलाएण जिवियाओ ववरोविया तेणेव उबागच्छइ ) तेथी ते त्याथी पाछ। ફરી ગયો અને પાછા ફરીને તે જ્યા ચિલાત ચાર વડે હણાયેલી પિતાની પુત્રી સુસમાં દારિકા પડી હતી ત્યા ગયે (उवागच्छित्ता सुसुमा दारिय चिलापण जीचियाओ ववरोविय पासह पासित्ता परसुनियत्तेव चपगवरपायवे धसत्ति वरणियलसि निवडइ,-तएण से धण्णे सस्थवाहे पवहिं पुत्तेहिं सद्धि अप्पछठे आसत्थे कूयमाणे कदमाणे विलय माणे महया २ सदेण कुहू २ सुपरुन्ने सुचिर काल बारमोक्ख फरे) ત્યાં જઈને તેણે સુસમાં દારિકાને ચિલાત ચાર વડે હણાયેલી જોઈ જોતાની સાથે જ તે પુત્રની સાથે પરશુ વડે કપાએલા ઉત્તમ ચપક વૃક્ષની
SR No.009330
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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